जब हमारा राग भगवान् में हो गया तो फिर हमारे कर्म का कर्त्ता भगवान हो गया ।
जब हमारा राग भगवान् में हो गया तो फिर हमारे कर्म का कर्त्ता भगवान हो गया । इसलिये हम उसके फल के भोक्ता नहीं रहे । इसलिये उस कर्म के जो फल को बुरा बताया है , शास्त्र में , उसके लिये भगवान् अर्जुन से कहते हैं कि तु धर्म को छोड़ करके मेरी शरण में आयेगा अगर तो -
" अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मौक्षयिष्यामि मा शुच: ।। "
( गीता १८-६६)
तू चिन्ता मत कर , मैं सब पाप तेरे समाप्त कर दूँगा । जो वेद लोग लगायेंगे - तूने पाप किया , क्या पाप किया हमने ? तुमने वाप की बात नहीं माना, प्रह्लाद ! तुझे नरक मिलेगा । भगवान् बीच में आ गये । लेकिन इसने हमको बाप मान लिया है इसलिये बाप की आज्ञा नहीं माना तो कोई बात नहीं वो माफ हो गया । कानून कानून को काटता है । ये फिज़ीकल धर्म है । माँ बाप वेटा स्त्री पति ये शारीरिक धर्म है,
अध्यात्मिक धर्म के आगे शारीरिक धर्म कट जाता है । उसका कोई मूल्य नहीं है एक पैसे का मूल्य नहीं है ।
इसलिये बार बार भगवान् वेदव्यास ने भागवत में अन्य तमाम पुराणों में इस बात को दोहराया है कि अगर कोई धर्म का परित्याग करके भगवान् की शरण में जाता है तो उसको धर्म त्याग का दण्ड नहीं मिलता , पुरस्कार मिलता है , क्योंकि वह भगवान् की शऱण में गया है । माया से उ्तीर्ण हो जाता है , परमानंद मिलता है , भगवान उसका दास बन जाते हैं । यहां तक बात होती है । - श्री महाराज जी ( कामना और उपासना भाग-२ , पेंज ४०९)
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