लोक व्यवहार की कला

बहुत सारे नये दोस्तों ने जो महाराज जी के वेद दर्शन को अब तक नही जाना है या निकट के काल में जुड़े हैं , ने बहुत यह जानने की इच्छा प्रकट की है कि संसार में हमें साधना पथ पर चलते हुए औंरों से किस तरह व्यवहार करना चाहिये ? या हमारा लोक व्यवहार कैसा होना चाहिये ?
मैं तो एक दासानुदास हूँ मेरे पास अपना कुछ भी ज्ञान नही हैं | फिर भी महाराज जी ने स्पष्ट शब्दो में इस पर कितनी बार प्रकाश डाला है |
उन्होने हमें सिखाया है कि संसार में दो प्रकार के नही तीन प्रकार के जीव हैं अध्यात्म की दृष्टि से |

१. पहला वे जो भगवान को मानते है ( मानते हैं माने सच में विस्वास करते हैं ठीक उसी तरह जीस तरह अपने आपके अस्तित्व को मानते हैं ) ए लोग हर पल भगवान के सत्ता को मानते है , श्रद्धा करते हैं भगवद् प्रेमी पिपासु हैं , भगवदोउन्मुखी जीव हैं , हरि गुरु के सिद्धान्त को मानते हैं | प्रेम करते हैं हरि से गुरु से , हरि  गुरु के चरणानुरागी हैं | 

२. दुसरे वे जो केवल दिखावे के लिए राम , राम , श्याम , श्याम करते हैं | इनको वास्तविक रुप से भगवान पर विस्वास उस्वास नही हैं | कोई तो मात्र दिखावे के लिय बड़े बड़े यज्ञ , कर्म काण्ड करवाते हैं , मंदीर तक बनबाते हैं बड़ी बड़ी , दान भी करते हैं तो दिखावे के लिये | बड़ी बडी ढ़ोल पिटवाते है दान करके , स्टेटस सिम्बल को लेकर की लोग हमको बड़ा दानी कहे | राजनीति करते है भगवान के नाम पर , लोगों को बांटते है धर्म के नाम पर , ऐसे लोग हैं 

३. तीसरे वे जो भ्रम में है , ऐसे लोगों को पूर्णरुपेन भगवान पर आस्था नही है | ये बेचारे डरे से रहते है कि कहीं भगवान सच में हुआ तो हमारा क्या होगा , डर कर पुजा पाठ करते हैं , डर के मारे मंदीर में , तो कभी मस्जिद में तो कभी गुरु द्वारा में हरेक देवी देवता के सामने आदत बस सर झुका लेतें हैं , डर के मारे एक दो , दस रुप्या दान भी कर लेते हैं , थोड़ा घुमने के बहाने तीर्थ भी हो लेते हैं | थोड़ा मनता बनता भी मना आते हैं | भगवान को और्डर भी दे आते हैं , घुस भी देने का वादा कर आते हैं शर्त के साथ की मां मुराद् पुरी करदे हलुआ बांटुंगी | कैसे कैसे गाने बना लिये है भजन के नाम पर ये लोग | 
आरती में गाते भी है कि सब कुछ है तेरा क्या लागे मेरा' परन्तु मन ही मन मे है सब कुछ हो जाये मेरा क्या लागे तेरा !   भगवान के सामने शर्त पर शर्त रख आते हैं कि तुम पहले मेरी पुरी कर फिर मैं तुमको चुनरी चढ़ाउँगी , भोले भाले लोग हैं यें |
यें सोचते है भगवान मेरा नौकर है जो चन्द चढ़ावे के लोभ में इनको मुंह मांगा चीज दें देंगें |
दर असल इनको भगवान पर रत्ति भर भरोसा भी नही की वो सर्व अंतर्यामी , सर्वद्रष्टा , सर्वशक्तिमान , सर्वनियंता , सर्वसाक्षी , सर्वसमर्थ हैं तो क्युँ मांगे , वो मुझे योग्य समझेगें , मेरे प्रारब्ध में होगा तो  बिन मांगे दे देंगें | और जब मागना ही है तो उनसे हमें उन्ही को मांगना चाहिये जिससे मांगने की कभी जरुरत ही ना पड़े | 

अब आईये असली प्रश्न पर की एक भगवद् प्रेमी पिपासु , साधक , भगवान और गुरु में पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा रखने वाले लोगों को , हरिगुरु के शरणागत , हरिगुरु प्रेमीजन को उपर के तीनो तरह के लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार रखना चाहिये ? करना चाहिये |

तो महाराज जी ने बताया है कि :- "तुम पहले प्रकार के लोगों के साथ प्रेम पूर्ण आदर के साथ व्यवहार करो सम्मान दो , क्योंकि वह तुम्हारा सच्चा साथी हैं हरि और गुरु के मार्ग में हैं भगवद् प्रिय जन हैं वही तुम्हारा असली गुरु भाई वहन है | असली कल्याणकारी दोस्त है , हम सफर हैं ये लोग तुम्हारे साधना में सहायक हैं | खुद तो कल्याण के मार्ग में है और तुमको भी उत्प्रेरित करते हैं | 

वाकी नीचे के दोनो तरह के लोगों से केवल मात्र संसारिक लिमिटेड व्यवहार करो , तटस्थ रहो , ऐसे लेगों से लगाव मत रखो , केवल उपरी व्यवहार करो , बुरा किसी का मत सोचों |  फर्ज पुरा करो केवल , चाहे ऐसे लोग तुम्हारे मां वाप भाई वहन तुम्हारे रिस्तेदार क्यों न हों | 

अगर तुम्हारे मां वाप , भाई बहन , रिस्तेदार या दोस्त मे से कोई भी भगवद् प्रेमी है भगवान के प्रति मन से समर्पित हैं | भगवान को वास्तव में मन से प्यार करता हो अच्छी बात है अन्यथा भगवान से विमुख अगर तुम्हारा मां वाप भी हो तौ भी उसको दिल में मत रखो , केवल अपना फर्ज पुरा करो , करते रहो , क्योंकि जैसे लोगों का संग तुम करोगे , तुम वैसा ही वन जाओगे ,

" कबीरा संगति साधु की जो गन्धी का बास,
जो कछु गन्धी दे नही तो भी बास सुवाश ||


इसलिये अगर तुम्हारा भाई बहन , मां वाप , वेटा , वेटी अगर भगवान का अनुयायी है | तुमको भी भगवान के तरफ प्रेरित करता है तो तुम उससे दोस्ती रखो , अन्यथा केवल फर्ज पुरा कर दो मन से अटैचमेंट मत रखो  , ऐसे लोगों के प्रति भीतर से कलेजा कठोर कर लो , भीतर से केवल , उपर से केवल प्रेम का नाटक कर दो , 

अत: हरि से गुरु से विमुख लोगों का संग विल्कुल मत करो चाहे वो कोइ भी हो , तुम्हारा मां वाप ही क्युँ न हों , पति या पत्नी हीं क्युँ न हो , केवल काम से काम रखो , संसारिक फर्ज पुरा करदो  :- श्री महाराज जी
राधे राधे।

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