हमारा संवल एक मात्र भगवान और गुरू हैं । कैसे ? जरूर पढीए ।।
बहूत बहूत महत्वपूर्ण , हो सके तो समय निकाल कर पुरा जरुर पढ़े , । :-
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हमारे संबंल एक मात्र हमारे प्राणों से भी प्यारे श्री महाराज जी हीं हैं । एक वही हम सभी के संबल है जो जो लोग उनको पुरे ह्रदय से मानता हीं नही वल्कि उनसे प्यार करता है । हर पल उनको अपने साथ महसूस करता है , अपने ह्रदय में रखता है । वही लोग सुरक्षित है । वहीं एक मात्र सर्व समर्थ हमारे माता पिता हैं , हमारे रक्षक हैं ,हमें कुसंग से बचाकर सत्संग के रास्ते पर प्रेरित करने वाले श्री महाराज जी हीं और उनके जन ही, प्रचारक हीं एक मात्र हमारे अपने है ।
श्री युगल शरण जी महाराज जी के प्रवचन का अंश -
संसार में संसारिक सम्पत्ति हो या पद् पद्ववी हो या सकाम संबन्धी आदि हो विप्पत्ति के समय कोई काम नही आता है । जब शरीर ही हमारा एक दिन साथ छोड़ देगा , जो कि निश्चित है , अटल है तो शरीर संबन्धी किसी भी वस्तु या व्यक्ति और संसारिक सम्पत्ति पर विश्वास करना सर्वदा हास्यस्पद् है । यह सारे संसारी वस्तु हमारे आपके संसारिक सुख के हीं साथी है । विपत्ति आने पर संसार में सब साथ छोड़ जातें हैं ।
एक कलक्टर जब रिटायर्ड हो जाता है , या किसी कारण उसकी कल्कटरी चली जाती है तो वेचारा हो जाता है । उसके आगे पीछे कोई नही रहता । यह अनुभव अलग अलग प्रकार से कमोवेश सभी लोगों का है । या एक दिन हो जाएगा अगर अभी तक नही हुआ है तो ।
इसलिय हमें इन सब संसारिक वस्तु पर भरोषा करके इसके बल पर नही जीना चाहिए ।
आज पुरे विश्व में ज्यादा से ज्यादा लोग , डिप्रेसन , तनाव , अलजाईमर , अलजाईमर डिमनेशिया , बल्डप्रेसर , शुगर आदि का शिकार होते जा रहें हैं इसका मुख्य कारण है संसार और संसारिक सम्पत्ति पर भरोषा करना , विश्वास करना की यही मुझे सुख देगा । फिर भला उससे पुछिए जो कड़ोंडों के सम्पत्ति और भरा पुरा परिवार के बाद भी आत्महत्या क्यों करता है , क्यों परेशान रहता हैं ।
जो लोग केवल भौतिकवाद और केवल भौतिकवाद के वल पर निर्भर है वो लोग सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं ।दुखी हैं , अशांत हैं अतृप्त हैं ।
पर जो व्यक्ति अध्यात्म के वल पर है और केवल शरीर के लिए भौतिक वस्तुओं का उपयोग भर करते है वो लोग ही वास्तव में सुरक्षित हैं । दरअसल भौतिक वस्तुओं का आधार भी अध्यात्म हीं है परन्तु हमलोग मूर्खता बस अध्यात्म को अलग और विज्ञान को अलग मानने की भूल कर वैठे हैं ।
इतिहास गवाह है १६ वीं सदी तक भारत अध्यात्म के क्षेत्र में आगे था ,भारत विश्व गुरु था , भारत में विदेशों से लोग पढ़ने आते थे , भौतिकवाद सपोर्ट सिस्टम में रहा । जब तक ऐसा था भारत में दुसरे देशों की अपेक्षा ज्यादा सुख शांति था । पर जैसे ही युरोप हमारे देश पर कब्जा किया हमको हमारे अध्यात्म से अलग कर दिया । हमारे अध्यात्मिक शिक्षा के आधार को दवा दिया । चारो तरफ अशांति आ गई । दो सौ पच्चास वर्ष युरोप भौतिक रुप से काफी तरक्की किया पर वह तरक्की १९ वी शदी के आते आते रुक गया और पतन होने लगा , उससे विश्व शासक होने का गर्व समाप्त हो गया । क्योंकि अध्यात्मिक विकास के बिना केवल भौतिक विकास कभी स्थाई हो ही नही सकता । क्योंकि भौतिक विकास का नींव है आध्यात्मिक विकास ।
जिस गति से उत्थान हुआ उसी गति से पतन भी होने लगा युरोप का । यही हाल अमेरिका का हुआ १९ वीं सदी में पुरे विश्व में अमेरिका की प्रमुख भूमिका रही । विश्व शक्ति बन कर उभरा , पर भला बिना अध्यात्म का , विना अध्यात्मरुपी मजबूत नींव का भौतिक समृद्धि कैसे टीक पाती , आज अमेरिका की स्थिति हम सबके सामने है । १०० साल मे नीचे चला गया , और फिर से भारत की तरफ देख रहा है ।
यही स्थिति चीन की हो रही है । चीन २० वीं सदी में आर्थिक शक्ति बन कर उभरा , मेड इन चाईना । विश्व का कारखाना , पर आज की हालात क्या है सभी के सामने हैं । गम्भीर मंदी ।
परन्तु भारत ही आज भी एक मात्र ऐसा देश है जहां किसी भी आर्थिक मंदी का असर जायदा नही हुआ । जानते हैं क्यूँ ? क्युँकि हमारा आधार , हमारी नींव आध्यात्म है । हमारा संबल हमारे गुरु हैं । हम अपना संबंल इन संसारिक भौतिक समृद्धि को नही मानते ।
फिर से भारत विश्व गुरु की तरफ बढ़ रहा है ।
अब चल रहा है टेक्नोलौजिकल युग । लोग परेशान हैं , राहत चाहते हैं ।
तो यदि हम पृथ्वी के इतिहास का विश्लेषण करें तो हमलोग इसी निष्कर्ष पर पहूँचते हैं कि आध्यात्मिक विकास के विना भौतिक विकास हमलोगों को गर्त में धकेल देगा।
आध्यात्मिक विकास हमारी आवस्यकता नहीं वल्कि अपरिहार्य है , परम आवश्यक है ।
और भौतिक विकास! तो भौतिक विकास उतना ही चाहिए जितना शरीर के लिए जरुरी है ।
हमारे श्री महाराज जी ने कहा है -' शरीर के लिए भौतिकता चाहिए और सुख पाने के लिए , शांति पाने के लिए आध्यत्मिकता चाहिए । वास्तविक विकास आध्यात्मिक समन्ववित भौतिक विकास से संभब है ।"
इसीप्रकार जो लोग भौतिक सुख को अपना सुख और भौतिक सम्पत्ति( धन , जन सम्पत्ति ), को अपना संबंल मानते है , इस पर इतराते हैं , अहंकार करते है तो उनको इन्ही वस्तुओं से धोखा मिलना शास्वत सत्य है ।
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