हमारे परम प्रिय गुरूदेव श्री कृपालु महाप्रभु जी का आदेश क्या है हमारे लिए ?

ध्यान दिजिए ! 
पुनि तेहि रसहिं पिवाइय औरहिं , आपुहूँ सोइ रस पीजिये ।
पिय मोल अमोलक लीजिये ।

श्री महाराज जी के उपर्युक्त पद् हमलोगें के लिए आदेश है । क्या आदेश है इस पद् के द्वारा ? 
युगलशरण जी महाराज :- देखिए, हम प्रचारक, आश्रमवासी, आप सत्संगीगण, हमारे भविष्य ये बच्चे ( सत्संगियो के बच्चे ) , हमारा लक्ष्य क्या है ? हमें श्री महाराज जी को परम सुख प्रदान करना है । इसके लिए क्या करना होगा ? आत्मकल्याण और जो पूँजी हमें मिली है उसको समस्त जगत में बाँटना ।
उस रस को पीना है और सबको पिलाना है । यह हम लोगों की जिम्मेदारी है । जो अमूल्य निधि हमको मिली है, उसका आस्वादन स्वयं करेंगें, एवं औरों को भी कराएँगें ।
पूर्व प्रांत का वैशिष्ट्य है सूक्षम बुद्धि । पश्चिम प्रांत में परिचालना संबंधी योग्यता , उत्तर भारत में सक्रियता , दक्षिण में अनुशासन और विदेश में गतिशीलता । हम साधना करना चाहते है न !  ये सभी गुण होने चाहिए साधक में ।
तो हम चारों ( प्रचारक, आश्रमवासी, सत्संगीगण, सत्संगियों के बच्चे ) लग जाएँ तैयारी में । हम जो श्री महाराज जी के परिवार में आए हैं , औरों से अलग हैं यदि हम सब मिलकर लग जाएँ तो विश्व की सेवा हम अवश्य कर पाएँगें । 
इससे श्री महाराज जी को बड़ी प्रसन्नता होती है । सुख मिलता है उनको कि मेरे बच्चे खुद तो मेरे बताए सिद्धान्तों का पालन करते है , साधना करते हैं और दुसरे को भी वही रस पिलाते हैं जो रस खुद पीते हैं । सही सही प्रचार प्रसार करके विश्व की सेवा में लगे हैं । 

श्री महाराज जी कहा करते थे - " संसार में लोग बहुत दुखी हैं रे ! उनको मेरी आवश्यकता है । मेरे सिद्धान्तों की , मेरे बताई साधना की आवश्यकता है । मुझसे इनका दु:ख देखा नही जाता ।" 

उनकी यह वाणी स्पष्ट करती है कि हम लोगों का उत्तरदायित्व !
एक बार श्री महाराज जी से हमने प्रार्थना की थी-' श्री महाराज जी जैसे आदि शंकराचार्य के चारों धामों में आश्रम हैं , ऐसे ही पूर्व , पश्चिम , उत्तर, दक्षिण में हमारा भी आश्रम होना चाहिए और वह भी प्रत्येक प्रान्त के वैशिष्ट्य के अनुसार । आप तो  " जगद्गुरुत्तम " हैं , आपका तो चारों दिशा में धाम होना चाहिए ।' उस समय श्री महाराज जी ने पीठ थपथपाकर बड़े प्यार से कहा था - ' हमारे बाद । अभी प्रचार करो ।'  उस समय हम सोच नही पा रहे थे कि श्री महाराज जी के बाद हमारा कोई जीवन होगा ! आज समय आ गया है श्री महाराज जी की भविष्यवाणी के साकार होने का ।
यहां पुरी में जगद्गुरु धाम होगा । शुरुआत यही  से करेंगें क्योंकि पुरी समन्वय धाम है । 'जगद्गुरु धाम ' हमलोग यहां बनाएँगें , लेकिन उसको बनाने के लिए पहले रो-रोकर इस भूमि को अश्रुसिक्त करेंगें ताकि यहाँ के प्रत्येक रज से 'राधे' नाम का गुंजन हो । तभी तो इतना बड़ा स्मारक यहाँ खड़ा हो पाएगा ।
हम अपने श्री महाराज जी , अम्मा जी , ठाकुरजी , किशोरीजी, के लिए इस जीवन को समर्पित करेंगें । श्री महाराज जी ने कहा था :- 

बनत चहत जो अमर-सुहागिनि, तन-मन-प्रानन दीजिये ।
दे सरवस लै प्रेम-सुधा-रस, तेहि रस महँ नित भिजिये ।
पिय मोल अमोलक लीजिये ।

यह जीवन का वास्तविक रहस्य है । अनमोल श्यामसुन्दर को मोल लेने के लिए तन-मन-प्राण हथेली पर लेकर चलेंगें और गुरु के चरणारविन्द में इसे समर्पण करके इस जीवन को सफल बनाएँगें । समग्र विश्व की सेवा करके श्री महाराज जी के स्वप्न को हमलोग साकार करेंगें । 
:- श्री युगलशरण जी महाराज ।

Comments

Popular posts from this blog

"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।