हम स्थितप्रज्ञ कैसे रहें ??
बाहर कितना भी उथल पुथल हो , हम अँदर से आत्म स्वरुप में स्थित हैं , आत्मा हैं शरीर नहीं यह हमेशा याद रखें , सदा शांत रहें | बाहरी बातावरण हमको प्रभावित नहीं कर पाय कभी , कभी विचलित न हों , कभी निराश न हों , हर पल उनका हीं सुमिरण करें ! हम स्त्री पुरुष के माया के चादर रुपी शरीर में हैं | सत्य तो यह की श्री कृष्ण एक मात्र पुरुष हैं | बाकीं हम सभी जीव उनकी प्रेमिका हैं | हम सब मानव शरीर उनके प्रेम को प्राप्त करने के उदेश्य के लिए ही प्राप्त किये हैं | हम अपनी अनंत काल की घनघोर अज्ञानता के कारण अपने को स्त्री पुरुष समझ बैठे हैं |
जबकी हम सब उनकी हीं दासी हैं उनकी दासतां ही हमारा एक मात्र धर्म हैं | और उनकी दासता को स्वीकार कर , मान कर , पुर्ण शरणागत् हो उनकी हीं सेवा करें | जिससे परमानंद मिल जाएगा एक दिन | :- प्रवचन से महाराज जी के
Comments
Post a Comment