हम स्थितप्रज्ञ कैसे रहें ??

बाहर कितना भी उथल पुथल हो , हम अँदर से आत्म स्वरुप में स्थित हैं , आत्मा हैं शरीर नहीं  यह हमेशा याद रखें , सदा शांत रहें | बाहरी बातावरण हमको प्रभावित नहीं कर पाय कभी , कभी विचलित न हों , कभी निराश न हों , हर पल उनका हीं सुमिरण करें ! हम स्त्री पुरुष के माया  के चादर रुपी शरीर में हैं |  सत्य तो यह की श्री कृष्ण एक मात्र पुरुष हैं | बाकीं हम सभी जीव उनकी प्रेमिका हैं | हम सब मानव शरीर  उनके प्रेम को प्राप्त करने के उदेश्य के लिए ही प्राप्त किये हैं | हम अपनी अनंत काल की घनघोर अज्ञानता के कारण अपने को स्त्री पुरुष समझ बैठे हैं |
जबकी हम सब उनकी हीं दासी हैं उनकी दासतां ही हमारा एक मात्र धर्म हैं | और उनकी दासता को स्वीकार कर , मान कर , पुर्ण शरणागत् हो उनकी हीं सेवा करें | जिससे परमानंद मिल जाएगा एक दिन  | :- प्रवचन से महाराज जी के

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"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।