हमारे सद्गुरू देव श्री कृपालु महाप्रभु जी ने क्या दवाई और संयम बतलाई है हमें । हमें उनके बतलाए किस दवा का पान करना है और क्या संयम रखना है ।
तो हमारे सद्गुरू देव श्री कृपालु महाप्रभु जी ने क्या दवाई और संयम बतलाई है हमें । हमें उनके बतलाए किस दवा का पान करना है और क्या संयम रखना है ।
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तो सबसे पहला :-
१. किसी दुसरे साधकों में दोष कभी मत देखो , खुद में दोष देखो । रात को सोने समय यह देखो कि आज मुझसे कहां कहां गलती हुई और प्रण करो कि कल दुबारा वहीं गलती ना हो ,
दुसरा -
२. प्रत्येक जीवों में अपने ईष्ट को मानों ।
३. स्वयं के ह्रदय में हर पल अपने ईष्ट को और गुरू को मानो, तुम अकेले नहीं हो , वो सदा तुम्हारे साथ हैं, यह हर पल महसूस करो ।
४. अपना संसार का काम करते हुए हरेक दस पंद्रह मिनट में यह सोचो की वो मुझे देख रहे हैं जो भी मैं कर रहा हुं सब नोट कर रहे हैं।
५. जब भी थोड़ा समय मिले उनका ध्यान कर लो , राधा नाम लेते रहो , सांस सांस में , खाली समय में उनका ध्यान करते हुए उनके गुणों का चिंतन करो । यह कर्मयोग की साधना हुई ।
६. अब प्रत्येक दिन, रात को या सुबह समय निकाल कर , या जब भी समय मिले कर्म संन्यास की साधना करो, यानी एकांत में बैठ जाओ थोड़ी देर के लिए और भगवान का, गुरू का रूपध्यान करते हुए जिस भाव के पद में रूची हो उसको गा कर या सुनकर रो रो कर उनको पुकारो , साधना करो , चाहे आधा घंटा हीं क्यों ना मिले ।
७. किसी भी चिज की चिंता मत करो , सब अपने ईष्ट और गुरू पर छोड़ दो । वो तुमको संभाल रहे हैं , तुम्हारी हर प्रकार से रक्षा कर रहें हैं , योगक्षेम वहन कर रहे हैं ।
८. कुसंग से दुर रहो , संसार में जितना आवश्यक हो उतना हीं व्यवहार करो , वाकी समय अगर बात करने की ईच्छा हो तो हरि गुरू की चर्चा करो , उनके गुणों की चर्चा करो । अगर कोई न सुनना चाहें , तो कोई बहाना बना कर वहां से अलग हो जाओ , लेकिन ध्यान रहे कुसंग कभी ना हो । अगर ना उठ सको और कोई जबरदस्ती ऐसा बात बोले जो तुम्हारे लिए काम का ना हो, तो सुनने की एक्टिंग करो , लेकिन मन हीं मन सांस सांस में हरिगुरू का नाम लेना शुरू कर दो और उसके सामने मुंडी हिलाते रहो जिससे उसको लगे की तुम उसका सुन रहे हो ।
९. अपना सभी अच्छे कर्म , दान , पुण्य सभी भगवान को अर्पित करते रहो , मन हीं मन यह बोल कर की हे प्रभु मैंने जो भी दान , पुण्य , और कोई भी जग में मैंने जो भी अच्छा काम किया वो आपके प्रेरणा से किया और आपको हीं समर्पित करता हुं ।
लेकिन जो भी गलती हुई मुझसे वो मैंने किया , अपनी कुसंस्कार बस किया । यह मै आपको अर्पित नहीं करूंगा । मुझे चाहो तो माफ़ कर दो या दंड दो प्रभु , अब आगे ऐसी गलती नहीं करूगां । इस प्रकार बार बार अपने गलत किये काम को, गलती को स्वीकारों और क्षमा मांगते रहो ।
देखो भगवान को जो भी तुम अर्पित करते हो वो कई गुणा करके भगवान तुमको वापस लौटाते हैं । इसलिए उनको अपना प्रत्येक अच्छा कर्म अर्पित कर दो , इससे भगवान तुम्हारा हीं परलोक बनाते हैं , बढ़िया प्रारब्ध बनाते हैं । लेकिन कोई फल की कामना मत करो । वो उनकी इच्छा पर छोड़ दो, जो फल देना चाहें, दें, न देना चाहें ना दे , अपने को तो उनका प्रेम, उनकी सेवा , उनका दर्शन , उनका आलिंगन चाहिए , बस। भक्त इसके सीवा और कुछ नहीं मांगता । ना मुक्ति और नाही मुक्ति ।
भोले हैं वो लोग जो भगवान को अपना पुण्य के साथ साथ पाप भी अर्पित करते हैं । वोलते है मैं जो भी पाप पुण्य किया वो सबको आपको अर्पित । यह गलत है , इससे पुण्य के साथ साथ तुम्हारा पाप भी कई गुणा होकर तुम्हारे प्रारब्ध को खड़ाब करेगा । फिर साधना में मन नहीं लगेगा ।
अत: सावधानी जरूरी है ।
१० साधकों से दीनता, नम्रता, और सहिष्णुता का व्यवहार करो हरवक्त और कोई अपमान कर भी दे तुम्हारा , तो उसको फिल ना करो ।
११. किसी भी दुसरे के गुरू की या उसके मार्ग को गलत ना कहो , बुराई ना करो , दुसरे के मार्ग की, धर्म की, धर्मावलंबियों की, महापुरूषों की निंदा मत करो कभी , उससे अलग रहो, उदासीन रहो , दुर्भावना ना होने पाय किसी के प्रति , सब के अलग अलग मार्ग है । दुसरे के मार्ग से उदासीन रहो ।
अपने गुरू के बातलाएं मार्ग का हीं अनुसरण करो केवल और अपने गुरू के अनुयायियों से अपने मार्ग ,ईष्ट और गुरू के गुणों की , धाम आदि की चर्चा करो ।
दुसरे धर्म या धर्मावलंबियों के प्रति द्वेष करोगे तो राग या द्वेष करने के कारण अगले जन्म में उसी की प्राप्ति होगी ।
१२. कभी किसी का भी अपमान मत करो , किसी को कष्ट ना दो , पीड़ा मत पहुंचाओ , वाणी को कंट्रोल में रखो, गलत वाक्य का प्रयोग ना करो ।
इतना करो तुम वांकी मेरे ऊपर छोड़ दो ।
जय गुरूदेव की जय , श्री राधे , 🙏❤️🙏
हर हर महादेव जय सदगुरुदेव जी
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