श्री कृपालु महाप्रभु जी कि दिव्य वाणी

श्री कृपालु महाप्रभु जी कि दिव्य वाणी :- 
१. "एक दिन ऐसा आएगा जब परिस्थिति ऐसे दुराग्रही नास्तिकों को भी आस्तिक बना देगी तथा वे भी कृतार्थ हो जाएँगे।":- श्री महाराज जी ।।

२. "जैसे आँख से शब्द का,कान से रूप का प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं हो सकता, इसी प्रकार सिर्फ साधना भक्ति से आध्यात्मिक तत्त्व का प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं हो सकता।" :- श्री महाराज जी ।। 

३. "महापुरुष को समझने की जटिल समस्या यदि सुलझ जाए, तब फिर बिना किसी किंतु, परंतु, लेकिन, मगर, चूँकि के ही जीव सीधे अपने लक्ष्य पर पहुँच जाएगा।" :- श्री महाराज जी ।।

४.भक्तिमार्ग का अधिकारी वह है जो न तो सांसारिक विषयों में अत्यन्त आसक्त ही होता है, और न तो साधन-चतुष्टयाँ की भाँति अत्यन्त विरक्त ही होता है :- श्री महाराज जी ।

५."यदि भगवान् को सर्वांतर्यामी सर्वज्ञ समझकर यह सब उन्हीं पर छोड़ दिया जाए, तो मांगने की बीमारी ही उत्पन्न न होगी" ।। :- श्री महाराज जी ।।

६.भगवद् प्राप्ति का प्रमाण :- 
"महापुरूष की प्राप्ति एवं उसके प्रति पूर्ण विश्वास ही भगवत्प्राप्ति का पक्का प्रमाण है।" - श्री महाराज जी ।

७. अपना अस्तित्व हीं भगवान् का अस्तित्व सिद्ध करता है । :- श्री महाराज जी ।।

८. वास्तविक संत, महापुरुष, या गुरू वही है जो समस्त संसारिक, बिषयादिक, इंद्रियादिक सुख और दु:ख से जीव के मन को मोड़ कर भगवान में लगाकर सदा के लिए सुखी बना दें,आनंद में निमग्न कर दे।:- श्री महाराज जी ।

९.एक दृढ़ विश्वासी तथा पूर्ण शरणागत शिष्य का 100% योगक्षेम उसका गुरू एवं ईष्ट वहन करते हैं ,उसे अन्य किसी भी देवी देवता के पास जाने कि कोई जरूरत नहीं है।:- श्री महाराज जी । ( पुस्तक रेफरेंस - कृपालु वचनामृत)

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"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।