भगवान् श्रीकृष्ण के इस प्राकृत जगत में अवतरण का मुख्य कारण
स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण के इस प्राकृत जगत में अवतरण का मुख्य कारण :-
चार प्रकार की ऐश्वर्य ज्ञान रहित-माधुर्यमय भक्ति होती है , जिसका आस्वादन करने के लिए रसिक शेखर श्रीकृष्ण सदा लालायित रहते हैं । इस रस में वह चमत्कारिता है कि स्वयं आत्माराम पूर्णकाम आत्मतृप्त भगवान् को भी यह व्याकुल कर देती है । परंतु यह शुद्ध माधुर्य रस ब्रजधाम यानि वृंदावन के सिवा और किसी धाम में नहीं इसलिए इस रस के रसास्वादन हेतु स्वयं श्रीकृष्ण एवं उनकी स्वरुप शक्ति ही अनादिकाल से दास, सखा, माता, पिता एवं कांतागणों के रुप में आत्मप्रकटित होते हैं । इन चारों भागों के परिकरों की सहायता के बिना श्रीकृष्ण इस रस का रसास्वादन नहीं कर सकते । अत: वे इन चारों भागों के परिकरों के वशीभूत रहते हैं । इन परिकरों को नित्य परिकर कहा जाता है । इनके प्रेम में आविष्ट होकर उनके साथ प्रभु अद्भुत लीलाएँ करतें हुए प्रेम रस का आस्वादन करते हैं । और इसिलिए भगवान् स्वयं ब्रह्मा के एक दिन में एक बार प्राकृत जगत् के इस धराधाम पर श्रीवृंदावन धाम में अपने परिकरों के साथ प्रकट होकर लीला क़रते हैं, प्रेम रस लुटाते हैं तथा स्वयं अपने भक्तों के प्रेम में निमग्न रहते हैं और परकीया भाव प्रेमरस का रसास्वादन करतें हैं। जो गोलोक में उनको नहीं मिलता है ।
यह सदा याद रहे कि भगवान को ऐश्वर्य ज्ञान युक्त भक्ति स्वीकार्य नहीं । क्योंकि उनमें प्रेम शिथिल हो जाता है और ऐसे ऐश्वर्य-युक्त प्रेम के वशीभूत नहीं होते भगवान ।
:- श्री महाराज जी
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