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Showing posts from June, 2021

प्रश्न: साधना करते-करते ही मन दिव्य होने लगता है या थोड़ा शुद्ध होने के बाद गुरु से जब प्रेम मिलता है उसके बाद जा के दिव्य होता है ?

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प्रश्न: साधना करते-करते ही मन दिव्य होने लगता है या थोड़ा शुद्ध होने के बाद गुरु से जब प्रेम मिलता है उसके बाद जा के दिव्य होता है ?     नहीं, शुद्ध होने लगता है उसी को दिव्य कहते है। शुद्ध होने लगता है कि गन्दगी साफ़ होती गई, तो हमारे विचार अच्छे होने लगे नैचुरल, हमारा अटैचमेंट संसार से कम होने लगा नैचुरल। ये सब उसकी पहचान है। जैसे हमारा किसी ने अपमान किया तो कितना चिन्तन हुआ था, आज अपमान किया तो थोड़ी देर में ख़तम कर दिया। हाँ, अब आगे बढ़ गये। कल हमारा सौ रुपया खो गया तो हम आधा घंटा परेशान रहे, आज सौ रुपया खो गया तो पाँच मिनट परेशान रहे, उसके बाद हमने कहा – ये हमारे लिये नहीं रहा होगा। हटाओ। ज्यों-ज्यों हम आगे बढ़ेंगे ईश्वर की ओर त्यों-त्यों ये कष्ट की फीलिंग कम होती जाएगी। ये माइलस्टोन असली है।     तो साधना में मन धीरे-धीरे, धीरे-धीरे शुद्ध होता है। लेकिन जब पूर्ण शुद्ध होगा तो अलौकिक शक्ति गुरु देगा, वह असली दिव्य है जिससे माया निवृत्ति होगी, भगवद्दर्शन होगा, सब समस्यायें हल होंगी। वह दिव्यता एक पॉवर है। और इधर की जो शुद्धता है इसको दिव्य बोलते हैं कि ये माया से ...

मसूरी लीला........साधक-श्री महाराजजी संवाद। श्री महाराज जी अपने गुरू के बारे में ।

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मसूरी लीला........साधक-श्री महाराजजी संवाद। एक बार एक सत्संगी ने श्री महाराजजी से पूछा कि हम संसार के लोगों को बाकी सभी प्रश्नों के उत्तर तो दे देते हैं किन्तु एक प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाते। जब लोग हमसे बहस करते हैं कि रामजी, कृष्णजी,और गौरांग महाप्रभु जी के गुरु थे,तो फिर तुम्हारे गुरु (श्री महाराजजी) के कोई गुरु क्यों नहीं है? श्री महाराजजी: अरे! तो तुम कह दो न की उनके भी गुरु हैं। सत्संगी: महाराजजी,लेकिन आपके गुरु तो कोई भी नहीं है। महाराजजी: हैं.....हैं .....पर बताएँगे नहीं। सत्संगी: महाराजजी,प्लीज बताइये न? महाराजजी: जब प्रचारक लोग प्रवचन करते हैं और सत्संगी फिर उनसे जुड़ते हैं और बाद में ये प्रचारक लोग बताते हैं कि हमारे गुरु 'जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज' हैं तो सब उन लोगों को छोड़ के मेरे पास आ जाते हैं। इसलिए अगर मैं भी अपने गुरु का नाम बता दूँगा तो तुम लोग भी मुझे छोड़ के उनके पास चले जाओगे, और मैं अकेले बैठा रह जाऊँगा मसूरी में। थोड़ी देर बाद सिद्धान्त समझाया कि देखो दो प्रकार के महापुरुष होते हैं एक साधन सिद्ध, और एक नित्य सिद्ध। तो साधन सिद्ध को तो गुरु बनाना ही पड़त...

मुर्ति पुजा क रहस्य , भगवान श्री कृष्ण का वास्तविक रंग कैसा है ।

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संसार में अगर श्यामसुन्दर के रंग की कोई वस्तु एक प्रतिबिम्ब रुप में आप जानना चाहें, तो ऐसा करें यहाँ गाँवों में अलसी का फूल होता है अलसी का पेड़ होता है उसमें एक फूल होता है हलका नीला , उसके ऊपर जब सबेरे - सबेरे की सूर्य की किरण पड़ती है लाल लाल , तो वो जो फूल में सूर्य की लाल किरण का मिक्श्चर होता है , ऐसा आईडिया आप ले सकते हैं, श्यामसुन्दर के शरीर के रंग का ।  लेकिन ऐसी कोई मूर्ति बनी नहीं । इतने बड़े साइंस के युग में भी या तो धर दिया काला पत्थर या तो धर दिया सफ़ेद पत्थर ये ठाकुर जी हैं । अब हमारे मन को कैसे भावे ? अरे ये मूर्ति बड़ी चमत्कारी है । इस डर के मारे हम जाते हैं मंदिर में । चमत्कारी ? अरे चमत्कारी फमत्कारी कुछ नहीं होता , ये हमारी भावना का फल देती है मूर्ति ।  मूर्ति में कोई बात कुछ नहीं है । उसी मूर्ति को हजारों हथौड़ी मारा है शिल्पी ने , लोहे की हथौड़ी से मार- मार करके  उनके हाथ पैर बनाये हैं । वही मूर्ति है ये । अजी लेकिन , अब तो मंदिर में आ गई है । मंदिर क्या है , मिस्त्रियों ने चढ़-चढ़  के उसके ऊपर दीवार बना दी , मंदिर खड़ा किया है और क्या है मंदिर ...

कोई अगर पुर्ण या आंशिक रूप से मानसिक विकलांग है तो वो जीव क्या भक्ति का अधिकारी नहीं है , या वो कैसे भक्ति करें ? या उसका उद्धार कैसे हो ?

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एक बहन ( जो युगल सरकार की भक्ति करती है पर  श्री महाराज जी से नहीं जुडें हैं और ना हीं उनके किसी प्रचारक से जुड़े हैं पर छ: महीने से उनका झुकाव श्री महाराज जी के तरफ हुआ है सोसल मिडिया द्वारा ) वो बहन बहुत बड़े सरकारी पद पर हैं ।  उन्होंने एक बड़ा मार्मिक प्रश्न पुछा है मुझसे और रिक्वेस्ट की है कि मैं उनके प्रश्न का समाधान करूं पहले बिना नाम लिए उनका और पोस्ट कर दुं फेसबुक पर ताकी उनके रिस्ते नाते दार संगी साथी भी समझ सके और बाद में मां से पुछ कर फिर डिटेल डालुं । उनका प्रश्न बड़ा मार्मिक और दिल को द्रवित करने वाला है । उनका प्रश्न है कि किसी का बेटा अगर पुर्ण या आंशिक रूप से मानसिक विकलांग है तो वो जीव क्या भक्ति का अधिकारी नहीं है , या वो कैसे भक्ति करें ? या उसका उद्धार कैसे हो ?  मैं अंत:प्रेरणा के आधार पर समाधान देता हुं । और मां से भी पुछ कर फिर लिखुंगा आगे । लेकिन मुझे लगता है यही उत्तर मां से भी मिल सकता है ।  सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा की मानसिक विकलांगता का स्तर क्या है । दुनिया के मनोवैज्ञानिकों ने इसे वर्गीकृत निम्न प्रकार से किया है :-  ...

" भक्त्या विवदमानेषु मार्गमाश्रित्य पश्यत : । तेन पापेन युज्येत यस्यार्योऽनुरमते गत : ।।"भरत जी ने कहा था कि भक्ति मार्ग में जो बहस करता है वो भी अपराध है ।

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" भक्त्या विवदमानेषु मार्गमाश्रित्य पश्यत : ।     तेन पापेन युज्येत यस्यार्योऽनुरमते गत : ।।" भरत जी ने कहा था कि भक्ति मार्ग में जो बहस करता है वो भी अपराध है । अगर कोई व्यक्ति आपसे कुछ पुछता है और आपने ठीक जबाब दे दिया और देख लिया ये जिद्दी है , नहीं मानता तो ठीक है , ठीक है । आप ठीक कहते हैं बस चुप हो जाओ, विल्कुल हाँ मेरी नॉलिज इतनी है ही नहीं आप बहुत ज्यादा जानतें हैं । ठीक है ठीक है खतम करो बात को बहस न करो आगे न बढ़ाओ । क्योंकि वह जिद्द करके आया है कि हम इसके खिलाफ बोलेंगे और तुम उससे भिड़ोगे फिर तुम्हे टेंशन होगा फिर तुमको अशांति होगी । - श्री महाराज जी ( कामना और उपासना भाग-२ पेंज ४४१) प्रश्न श्री महाराज जी से - ईश्वर प्राप्ति में मान-अपमान को सबसे बड़ा बाधक माना जाता है, किन्तु इनसे छुटकारा पाना इतना आसान नहीं है । क्या ऐसा कोई उपाय है, जिससे इन दोनों के रहते हुए भी हमारा काम बन जाए ?  उत्तर श्री महाराजी द्वारा - हमारा मन मान-अपमान दोनों को पकड़े हुए है । ये दोनों ईश्वर प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण बाधक तत्त्व बनकर हमारे सामने उपस्थित हैं । इनसे छुटकारा पाना इतन...

जब हमारा राग भगवान् में हो गया तो फिर हमारे कर्म का कर्त्ता भगवान हो गया ।

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जब हमारा राग भगवान् में हो गया तो फिर हमारे कर्म का कर्त्ता भगवान हो गया । इसलिये हम उसके फल के भोक्ता नहीं रहे । इसलिये उस कर्म के जो फल को बुरा बताया है , शास्त्र में , उसके लिये भगवान् अर्जुन से कहते हैं कि तु धर्म को छोड़ करके मेरी शरण में आयेगा अगर तो -      " अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मौक्षयिष्यामि मा शुच: ।। "                                                 ( गीता १८-६६) तू चिन्ता मत कर , मैं सब पाप तेरे समाप्त कर दूँगा । जो वेद लोग लगायेंगे - तूने पाप किया , क्या पाप किया हमने ? तुमने वाप की बात नहीं माना, प्रह्लाद ! तुझे नरक मिलेगा । भगवान् बीच में आ गये । लेकिन इसने हमको बाप मान लिया है इसलिये बाप की आज्ञा नहीं माना तो कोई बात नहीं वो माफ हो गया । कानून कानून को काटता है । ये फिज़ीकल धर्म है । माँ बाप वेटा स्त्री पति ये शारीरिक धर्म है,  अध्यात्मिक धर्म के आगे शारीरिक धर्म कट जाता है । उसका कोई मूल्य नहीं है एक पैसे का मूल्य नहीं है ।...

योग का क्या मतलब है ? योग क्या हैं ? योग का असली अर्थ - श्री महाराज जी के श्री मुख से :- " संयोगो योग इत्युक्तो जीवात्म परमात्मनो: ।" (याज्ञवल्क्य )

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योग का क्या मतलब है ? योग क्या हैं ?  योग का असली अर्थ - श्री महाराज जी के श्री मुख से :-  " संयोगो योग इत्युक्तो जीवात्म परमात्मनो: ।" (याज्ञवल्क्य ) जीवात्मा परमात्मा का मिलन हो उसका नाम योग । योग माने मिलन । तो जीवात्मा परमात्मा का मिलन तो सदा से है ही । होना क्या है? वो मन बुद्धि का मिलन । यानी आपके मन का अटैचमेंट सेन्ट परसेन्ट भगवान् में हो , निरंतर । अर्जुन को यही कर्मयोग बताया श्री कृष्ण ने । काम तो हत्या का , इतना बुरा काम किया हत्या करना , लाखों करोड़ो की हत्या की अर्जुन ने और जिनकी जिनकी हत्या की पुरुषों की उनकी स्त्रियाँ विधवा हो गयीं । अब विधवा होने के बाद बहुत सी स्त्रियाँ करैक्टरलेस हो गईं , दुश्चचरिता हो गईं । इतना सारा रियक्शन बुरा होगा , भविष्य में , लेकिन युद्ध कोई अच्छी चीज तो नहीं हैं ? ये अर्जुन ने स्वयं किया । हाँ और गवाही ? करोड़ो । लेकिन श्रीकृष्ण जो भगवान् बनें हैं उन्होंने अपने वहीखाते में कुछ लिखा ही नहीं । अरे दफा ३२३ भी नही लिखा । मर्डर वगैरह की बात कौन करता । क्यों ? इसलिये कि योग था उसके मन का श्रीकृष्ण में ।   " तस्मात् सर्वेषु कालेषु ...

*यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ।**तस्यैते कथिता ह्यर्थाः प्रकाशन्ते महात्मनः।*(श्वेता. ६-२३)

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*आप लोग जो कुछ सोचते हैं, जो कुछ जानते हैं, जो कुछ करते हैं, तीन- ज्ञान, बल, क्रिया यानी ज्ञान, बल, माने इच्छा क्रिया। ये तीन भगवान् में पूर्ण-पूर्ण और हमारे अन्दर क्षुद्र-क्षुद्र, थोड़ी-थोड़ी। लेकिन वहीं से कनेक्टेड हैं सदा। उन्हीं की शक्ति से ये शक्तिमान् हो रहा है जीव और उन्हीं की शक्तियों से शक्तिमती, जितनी भी शक्तियाँ हमारी वर्क कर रही हैं जितनी शक्तियाँ भगवान् में हैं उतनी हमारे अन्दर भी हैं लेकिन एक के पास पारस है, एक के पास एक लाख रुपया है। पारस तो अनन्त रुपया बनाता जायगा और बना रहेगा स्वयं और एक लाख रुपया क्या है आज, दो-एक साल में समाप्त हो जाता है। लेकिन है सब चीज हमारे पास भी क्योंकि हम सत्, चित्, आनन्द ब्रह्म के अंश हैं इसलिये सन्धिनी, संवित्, ह्लादिनी, तीनों शक्तियों का रियेक्शन हमारे साथ है। वो भी चेतन, हम भी चेतन, वो भी अनादि, हम भी अनादि, वो भी नित्य, हम भी नित्य। लिमिट का भेद है। हम लिमिटेड हैं वो अनलिमिटेड है, बस। मोटी-सी परिभाषा समझिये हमारी सब चीजें सीमित हैं, उसकी सब चीजें सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म। कोई भी चीज़ भगवान् की सान्त नहीं है, सीमित नहीं है, सब अनन्त। सत्ता...

शास्त्र की ये चिकनी-चुपड़ी बातें लौजिक से समझ नहीं आतीं । तो क्या आचार्यो ने जो कहा, वह गलत है । यदि नहीं, तो नाम लेने पर भी अभी तक हमारा काम क्यों नही बना ?

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भाव कुभाव अनख आलसहूँ ।  नाम जपत मंगल दिसि दसहुँ । - रामचरित मानस , तुलसीदास ।। नाम चाहे श्रद्धा से लीजिए या अश्रद्धा से । भाव हो या न हो, नाम लेते रहिए । काम बन जाएगा । जैसे - गंगाजी का नाम ले लीजिए, स्नान मत करिए । केवल नाम ले लेने से समस्त पाप चले जाएँगें ।  शंकराचार्य जी ने भी कहा है - श्रद्धाभक्त्योरभावेयपि भगवन्नाम संकिर्तनं समस्तं पापं दुरितं नाश्यति । तात्पर्य यह है कि श्रद्धा हो या न हो, लेकिन भगवान का नाम लेने मात्र से जीव पाप मुक्त हो जाता है ।  किन्तु शास्त्र की ये चिकनी-चुपड़ी बातें लौजिक से समझ नहीं आतीं । तो क्या आचार्यो ने जो कहा, वह गलत है । यदि नहीं, तो नाम लेने पर भी अभी तक हमारा काम क्यों नही बना ? इस विषय पर भागवत का एक प्रकरण बड़ा प्रसिद्ध है । सभी लोग इस बात का ढिंढोड़ा पीटतें हैं कि अजामिल ने अपने पुत्र नारायण का नाम लिया और काम बन गया । म्रियमाणो हरेर्णाम गृणन् पुत्रोपचारितम् । अजामिलोअ्प्यगाद्धामकिं पुन: श्रद्धया गृणन् ।। - भागवत  उसी प्रकार जब कोई मरता है तो लोग गीता-रामायण सुनाते हैं । तुलसी जल पिलाते हैं । भगवान की फोटो लगातें हैं । किन्तु...

ध्वंस का कारण हो, प्रेम के नष्ट होने का कारण हो, फिर भी प्रेम न घटे, उसमें हलचल न होने पावे। नॉर्मेलिटी में चलता जाय आगे को, उसका नाम प्रेम।

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*सुकरात एक फिलॉसफर हुआ है, उसका शिष्य था डायोज़नीज़, उसके पास सिकन्दर बादशाह गया और उसने कहा महाराज! कुछ हमारे लिए सेवा बताइये। तो डायोजनीज ने कहा, हट! धूप छोड़ दे! सेवा करेगा यह। है क्या तेरे पास फटीचर दरिद्री। तू क्या सेवा करेगा? मेरी सेवा करेगा? मेरी सेवा करना है तो दे स्प्रिचुअल हैपीनेस। है तेरे पास? नहीं वह तो नहीं है। फिर क्या सेवा करेगा तू? रसगुल्ला खिलायेगा मुझे? इसके लिये मैं बाबा जी बना हूँ? अरे! भाई कोई गरीब पैसा माँगने जाये तो उसको पैसा चाहिए। कोई बुद्धि माँगने जाय उसको ज्ञान चाहिए। हमको स्प्रिचुअल हैपीनेस चाहिए और तू दान करने का स्वांग रचकर के मेरे पास आया है। क्या देगा तू तो खुद भिखारी है। यह जो छोटी मोटी सम्पत्ति यह हीरा मोती यह मिट्टी के टुकड़े जो तू इण्डिया वगैरह से लेके आया है, यह मुझे देने आया है? (हाँ!)* *तो प्रेम एक दिव्य वस्तु है। यह नं. दो वाला। लेकिन नं. एक वाला जो प्रेम है, वो हमको करना है। करना पड़ेगा। यहीं पर कनफ्यूजन हो जाता है संसार में बड़े-बड़े काबिलों को कि भाई यह तो ऐसा है महाराज जी कि वह तो कृपा साध्य है प्रेम। हाँ है। तो फिर कृपा कर दीजिये। लेकिन यह त...

वेद मंत्र में स्वर होते हैं। स्वर। जैसे गायत्री मंत्र आप लोग जानते होंगे।*

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*एक राक्षस ने यज्ञ कराया, ऋषियों को जबरदस्ती पकड़ के। और उसमें मंत्र था- "इन्द्रशत्रुर्विवर्धस्व"। यानी इन्द्र का शत्रु बढ़े और इन्द्र मारा जाय। यज्ञ हुआ तो जो यज्ञ कराने वाले थे, वो तो इन्द्र के भक्त थे, ब्रह्मर्षि लोग। उन्होंने कहा ये राक्षस तो हमको पकड़ कर लाया अब हम क्या करें ? तो उन्होंने चालाकी की। वेद मंत्र में स्वर होते हैं। स्वर। जैसे गायत्री मंत्र आप लोग जानते होंगे।* *तत्सवितु वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।* *ये गायत्री मंत्र है। ऐसे नहीं बोलना चाहिये। पाप लग जायेगा इसमें स्वर होते हैं-*  *तत्स वितुर्वरेण्यं भर्गो ऽ देवस्य धीमहि धियोऽयो नः प्रचोदयात्।* *ऐसे बोला जाता है। तो स्वर लगा है हर एक अक्षर के ऊपर । तो उन्होंने आद्युदात्त की जगह अन्त्योदात्त कर दिया। अक्षर वही बोले, तो उसका अर्थ हो गया कि 'इन्द्र के द्वारा राक्षस मारा जाय।‌' यज्ञ में भगवान् प्रकट हुये। भगवान् ने कहा तुम लोगों ने जो माँगा है, मैंने दिया। अब युद्ध हुआ तो राक्षस मारा गया। जब मरने लगा तो उसने कहा- ऐ भगवान् ! मैं भी तुम्हारी सन्तान हूँ। ये तुमने अनर्थ किया। हमको वरदान द...

वेद मंत्र में स्वर होते हैं। स्वर। जैसे गायत्री मंत्र आप लोग जानते होंगे।*

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*एक राक्षस ने यज्ञ कराया, ऋषियों को जबरदस्ती पकड़ के। और उसमें मंत्र था- "इन्द्रशत्रुर्विवर्धस्व"। यानी इन्द्र का शत्रु बढ़े और इन्द्र मारा जाय। यज्ञ हुआ तो जो यज्ञ कराने वाले थे, वो तो इन्द्र के भक्त थे, ब्रह्मर्षि लोग। उन्होंने कहा ये राक्षस तो हमको पकड़ कर लाया अब हम क्या करें ? तो उन्होंने चालाकी की। वेद मंत्र में स्वर होते हैं। स्वर। जैसे गायत्री मंत्र आप लोग जानते होंगे।* *तत्सवितु वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।* *ये गायत्री मंत्र है। ऐसे नहीं बोलना चाहिये। पाप लग जायेगा इसमें स्वर होते हैं-*  *तत्स वितुर्वरेण्यं भर्गो ऽ देवस्य धीमहि धियोऽयो नः प्रचोदयात्।* *ऐसे बोला जाता है। तो स्वर लगा है हर एक अक्षर के ऊपर । तो उन्होंने आद्युदात्त की जगह अन्त्योदात्त कर दिया। अक्षर वही बोले, तो उसका अर्थ हो गया कि 'इन्द्र के द्वारा राक्षस मारा जाय।‌' यज्ञ में भगवान् प्रकट हुये। भगवान् ने कहा तुम लोगों ने जो माँगा है, मैंने दिया। अब युद्ध हुआ तो राक्षस मारा गया। जब मरने लगा तो उसने कहा- ऐ भगवान् ! मैं भी तुम्हारी सन्तान हूँ। ये तुमने अनर्थ किया। हमको वरदान द...