भगवत्प्राप्ति में बाधक मानस रोग ।
**भगवत्प्राप्ति में बाधक मानस रोग *******
प्रत्येक जीव ( व्यक्ति) मन के रोगों से ग्रसित है | पर ऐसे विरले हैं जो अपने मन के रोगों को देख पाते हैं | उसका विश्लेषण कर पाते हैं कि हमारे मन में रोग कहाँ है और किस रुप में है कि मन के रोगी को यह प्रतीत ही नही होता कि उसे रोग हुआ है | शरीर में रोग होने पर साधारणतया व्यक्ति को अनुभव होने लगता है कि वह बीमार हो गया है , जिससे स्वाभाविक रुप से उसके मन में स्वस्थ होने की तीव्र आकांक्षा रहती है | परंतु मन का रोगी यह अनुभव ही नहीं करता कि वह अस्वस्थ है मानसिक रुप से | अत: उसमें स्वस्थ होने की प्रवृति ही नही दिखाई पड़ती |
इसके साथ एक समस्या और जुड़ी हुई है मन के रोगी के साथ कि वह हर सामने वाले व्यक्ति को मनोरोग से ग्रस्त देखता है | वह यदि स्वस्थता की चिंता भी करता है , तो दूसरों की | इसका तात्पर्य यह है कि स्वयं को पूर्ण स्वस्थ मानता है | इसलिए हम जब भी चर्चा करते हैं , तो दूसरों की बुराई की | इसका मतलब हमें अपनी बुराइयों की प्रतीति ही नहीं हो रही है और हम सोचते है कि सारी बुराइयाँ दूसरे लोगों में ही है , हममें बिल्कुल नहीं है | प्रत्येक व्यक्ति सोचता है कि बस मुझे छोड़कर बाकी सब में बुराइयाँ हैं | अब बुराई निकले कैसे ?
हर आदमी दूसरों की बुराई दूर करने की चेष्टा करता है , जबकी क्रम उल्टा है | सज्जनों ! किसमें कितनी बुराई है , यह बताने से काम नही चलेगा | पहले हमें अपनी बुराइयों पर विशेष रुप से अवलोकन करना है एवं उसे दूर करने की चेष्टा करनी है | इन मानस रोगों को दूर करने के उपाय तुलसीदास बता रहें हैं -
सदगुरु बैद बचन बिस्वासा , संजम यह न विषय कै आसा |
रधुपति भगति सजीवन मूरी , अनूपान श्रद्धा मति पूरी ||
बस सदगुरु रुपी वैद्य से ही चिकित्सा कराओ , जिन्हे रोगों की जानकारी भी है और वे मिटाएँगें भी | उनके आदेशो पर दृढ विश्वास रखते हुए दवा का सेवन करना है | और दवा क्या है ? ' रधुपति भगति सजीवन मूरी |' दवा है प्रभु की भक्ति ! केवल भक्ति हीं एक मात्र उपाय है और इसमें कुपथ्य से सावधान रहना है | परहेज बताया , ' संजम यह न विषय की आसा |'
विषयों से मन को संजम में रखते हुए यदि भक्ति रुपी दवा का सेवन सदगुरु रुपी वैद्य के अनुसार किया जाए , तो निश्चित ही बुराइयों से छुटकारा मिलेगा |
शेष...........
- माँ रासेश्वरी देवी
राधे राधे
ReplyDelete100 percent correct.I am feeling that my mind has been infected by Maya.I am trying but I am not satisfied in my Sadhna.Radhe Radhe
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