चार्वाक् कौन है ? यह स्वर्ग के बृहस्पति हैं । देवताओं के गुरु बृहस्पति, बुद्धि की औथारिटी, उनका ये सिद्धांत है चार्वाक् । चारू-वाक्, मीठी-मीठी लगने बाली वाणी । ये क्या कहते हैं।

श्री महाराज जी- तो आप लोग चार्वाक् के सिद्धांत से भी नीचे वाले हैं - 

चार्वाक् कौन है ? यह स्वर्ग के बृहस्पति हैं । देवताओं के गुरु बृहस्पति, बुद्धि की औथारिटी, उनका ये सिद्धांत है चार्वाक् । चारू-वाक्, मीठी-मीठी लगने बाली वाणी । ये क्या कहते हैं-

यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत्।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत: ।।
                                                (चार्वाक्)

 "जब तक जियो, सुख से जियो, कर्जा करके घी पियो । मरने के बाद फिर कौन आता है, कौन जाता है , सब बकवास। "
ये शरीर को हीं सब कुछ मानते हैं, अपना सुख यानी शरीर का सुख । वैसे तो आप लोग हँसेगे कि ये महामूर्खता , ये बृहस्पति का चलाया हुआ है ?

 ऐसा हुआ था एक बार कि देवताओं और असुरों का युद्ध हुआ तो बहुत असुर मारे गए । तो असुरों के गुरु शुक्राचार्य, उन्होंने कहा यह तो बड़ा गड़बड़ हो गया । हमारे तो तमाम असुर मारे गए , अब तो देवता लोग हमेशा दबा लेंगे । तो वो गए तप करने , कि ऐसी सिद्धि प्राप्त करके आवे कि जितने मरे हैं, सबको जीवित कर दें । तो देवताओं को खबर हुई , उन्होंने कहा - ये तो बड़ी प्रॉब्लम खड़ी हो जाएगी, ये सब जिंदा हो जाएंगे तो । 
तो उधर तो वो तप करने के लिए गए और उनके तप को भ्रष्ट करने के लिए इन्द्र ने अपनी लड़की भेज दी और इधर बृहस्पति ने शुक्राचार्य का शरीर धारण कर लिया, शुक्राचार्य बन गए और असुरों में गये । असुरों ने नमस्ते किया । वो समझे कि हमारे गुरुजी हैं और उनको ये तत्त्वज्ञान बताया कि शरीर ही सब कुछ है, इसका सुख हीं सब कुछ है । वह चार्वाक् सिद्धांत हुआ । और उनसे यह भी कह दिया कि देखो एक देवता हमारा शरीर धारण करके आएगा, जब आवे तो उसको मार कर भगा देना । अब शुक्राचार्य की तपस्या को भंग कर दिया, इन्द्र की लड़की ने । अब वो आए जब असुरो के पास तो उन्होंने (असुरों ने) कहा- गेट आउट । दंग रह गए गुरु जी । क्या हो गया इन लोगों को ! इतनी हमारी पूजा करते थे रोज और आज ये हमारा अपमान कर रहे हैं । अरे मैं शुक्राचार्य हूंँ । हांँ-हांँ मालूम है, मालूम है । जाओ-जाओ नहीं तो पिट जाओगे अभी । वह बिचारे भाग आए ।

 तो ये इसलिए बृहस्पति ने एक सिद्धांत बनाया असुरों के लिए कि वो आगे स्प्रिचुअल पावर ना पा सकें । इसी में लिप्त रहें, विषय भोग में ।

अस्तु चार्वाक् का सिद्धांत है अपने स्वार्थ, माने शरीर के अर्थ तक सीमित रहो । वैसे तो सुनने में आप लोग सोचते होंगे, बड़ा बेवकूफ था । बड़ा गलत सिद्धांत है ।
 लेकिन आज छ: अरब आदमी में छ: लाख भी नहीं निकलेंगे ऐसे जो इस सिद्धांत को प्रैक्टिकल मान लें । जैसे आपका अटैचमेंट मां में है , बाप में है, भाई मे है, परिवार में, कहीं है ? हांँ है ।
 तो फिर आप चार्वाक् से नीचे हैं । चार्वाक् कहता है- केवल अपने शरीर तक रहो । मांँ, बाप, भाई , बहन दु:खी हों, रोवें , गायें , मरें, उसे मत सोचो । और आप तो और लोगों में अटैचमेंट किए बैठे हैं । केवल शरीर में अटैचमेंट रखना, ये चार्वाक् सिद्धांत है । तो यहांँ तक पहुँचे हुए कितने लोग हैं जो केवल शरीर तक सीमित हों, न कहीं राग हो , न कहीं द्वेष हो । बस शरीर में ही राग, अटैचमेंट । 
चलते हैं चार्वाक से  आगे - इसके आगे आये हौब्स,  इंग्लैंड का फिलॉस्फर । हेल्वेशियस- फ्रेंच फिलॉस्फर- इन लोगों ने कहा कि भाई ! चार्वाक सिद्धांत जो है यह ठीक नहीं है । यह चलेगा नहीं । क्यों ? अगर अपने ही स्वार्थ को हर एक व्यक्ति उद्देश्य मानेगा, लक्ष्य मानेगा तो क्रांति हो जाएगी। एक दूसरे को खा जाएंगे लोग। इसलिए दूसरे का भी ख्याल रखना चाहिए । यानी परोपकार भी हो और स्वार्थ भी हो । हाँ,  स्वार्थ नंबर १, परार्थ नं. २  ।
 लोगों ने चार्वाक के सिद्धांत को सुनने के बाद जब यह सुना तो लोगों ने कहा,  हांँ , ये तो समझौता अच्छा है । अपना भी स्वार्थ देखो , दूसरे का भी देखो ।

 इसके बाद और आए - फिलौसफर बटलर । वो कहते हैं भई! देखो ये परार्थ स्वाभाविक धर्म है । देखो सिंह, शेर अपने बच्चे का पालन करता है, उसको खाता नहीं मारता नहीं ।  तो परार्थ  ये तो प्रमुख हैं । स्वार्थ-वार्थ ये सिद्धांत गलत है । केवल परार्थ । लेकिन वह परार्थ क्या होगा ? फिजिकल परार्थ ।  ये जितने भी एम( लक्ष्य) बनाने वाले हैं , ये केवल आनंद के लिए बना रहे हैं । कैसे आनंद मिलेगा ? चार्वाक कहता है  ऐसे आनंद मिलेगा , हौब्स कहता है ऐसे मिलेगा,  बटलर कहता है , नहीं  ऐसे मिलेगा ।

बैन्थावे आए और मिल - इन लोगों ने कहा कि देखो भाई! अपना स्वार्थ पीछे रखो और परार्थ पहले रखो । और बहुमत जो हो वो मानो । बहुमत का सिद्धांत । आजकल भी चल रहा है । वही बैंथावे मिल का सिद्धांत, इलेक्शन होता है जो बहुमत हो वही कानून पास हो जाए ।
लेकिन अगर बहुमत मूर्खों का हो तो ?  तो,  तो सर्वनाश हो जाए । लेकिन बहुमत सिद्धांत मानना चाहिए । एक हजार गधे,  धोबी वाले गधे । इन गधों की बुद्धि इकट्ठा हो के एक मनुष्य की बुद्धि के बराबर तो नहीं हो सकते । तो बहुमत से क्या काम चलेगा ? 
छः अरब आदमीं में तो बहुमत में बेपढ़े-लिखे हैं । और फिर पॉलिटिक्स जानने वाले कितने हैं ? अरे , आपके इंडिया में ही,  लोकसभा में , विधान सभा में हाथ उठाने वाले अधिक हैं । पॉलिटिक्स जाननें वाले कितने लोग हैं ? तो बहुमत से तो सिद्धांत कोई बनेगा नहीं ।

 तो आधीदैविकवादी  आए,  उन्होंने कहा- भई देखो! एक कन्शेन्स होती है वह भीतर बोलती है, उसके अनुसार काम करना चाहिए । तो क्यों जी ! ये सबके अंदर कन्शेन्स एक-सी है तो सबके विचार अलग-अलग है, कोई अच्छा आदमी है, कोई बुरा आदमी है, कोई चोर-डाकू है, कोई अत्याचारी, कोई अनाचारी ,  दुराचारी,  भ्रष्टाचारी है । और अगर एक आदमी की भी,  मान लो कन्शेन्स अलग-अलग है सबकी ,  तो उसकी कन्शेन्स ने अभी तो कहा यह काम मत करो , गलत है फिर दो दिन बाद कहा - करो । 
 तो ये  भी सब फिजिकल बातें हैं ।

फिर आए कौमन सेंस वादी । ये कहते हैं भई देखो ! कौमन सेंस से काम करना चाहिए । लेकिन ये तो बताओ कि तुम्हारी कॉमन सेंस एक्सपीरिएंस  के अनुसार होगी न ?
 तुम्हें जो अनुभव होगा वही तो तुम्हारी कॉमन सेंस होगी । और मैट्रियल (भौतिक) अनुभव है तुम्हारा ! तो फिर तुम कैसे अपने कौमन सेंस से दिव्य-आनंद का निर्णय करोगे ? 

ये सब गलत । ये सिद्धांत सबका सब गलत, क्योंकि ये अपनी माइक( मैटिरियल) बुद्धि से बनाया है इन लोगों ने ।
 पश्चात्य दार्शनिकों ने जो फिलौसोफी बनाई है वो अपने दिमाग से बनाई है और हमारी इंडिया में ऐसा नहीं ।
हमारे यहां वैदिक सिद्धांत ही माननीय है । '

'अपौरूषेय वेद' किसी मनुष्य के बनाए हुए नहीं । मनुष्य के बनाए हुए जितने भी ग्रंथ होते हैं,  वह चूंँकि मायाबद्ध है इसलिए उसमें तमाम गलतियां होंगी, भ्रम होंगी, विप्रलिप्सा होगी । वेद ऐसा ग्रंथ है जो विनिर्गत ग्रंथ कहलाता है । माने प्रकट हुआ है । भगवान् ने भी नहीं बनाया है  । वह प्रकट होता है,  फिर प्रलय काल में भगवान में लीन हो जाता है और फिर सृष्टि के समय प्रकट होता है। 

:- पंचम मूल जगद्गुरू , श्री कृपालु जी महाराज ।।
( जीव का लक्ष्य , पृष्ट- ३,४, ५ & ६ )

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