संत दर्शन का लाभ
संत दर्शन का लाभ:-
मै यह श्री महाराज जी के कृपा से यह सुना और आपको सुना रहा हुं जो अक्छरस सत्य है. बड़ा प्रेरक है
"एक बार नारद जी भगवान कृष्ण से पुछा की " हे प्रभु सन्त दर्शऩ का लाभ कृपा करके वतलाए"
भगवान ने कहा "हे नारद पास के गांव मे नाली में एक कीड़ा रहता है तुम उससे जाकर यह सवाल करो , वह तुम्हे संत दर्शन का लाभ वताएगा"
अब नारद जी खुद एक ज्ञानी उनको यह वात प्रभु का वड़ा अजीव लगा की मुझे नाली का कीड़ा क्या वतलायगा फिर भी प्रभु का आदेश समझ कर वे उस कीड़े से मिले और संत दर्शन का लाभ पुछा.
नाली का कीड़ा को बड़ा आश्चर्य हुआ की भगवान को मेरा भी भान है , वह विभोर हो गया और नारद जी को वड़ी विनम्रता के साथ उत्तर दिया की
" हे मुनी वर मै एक तुक्छ प्राणी आप को संत दर्शन का लाभ कैसे वतलाऊ , हा इतना वतला सकता हुं की सामने वाले पेड़ की डाली पर आज से ठीक तीन माह बाद एक चिड़ियां बैटेगी वह आपको संत दर्शन का लाभ अवश्य वतला देगी "
इतना कह कर वह कीड़ा अपना प्राण उसी छण छोड़ दिया.
नारद जी अब तीन महीने इन्तजार के बाद उस पेड़ के पास गय,
वास्तव मे एक चिडियाँ वहा बैठी मिली!
उन्होने वही सवाल चिड़ियाँ से किया,
चिडियाँ भी गद गद होकर यह कहा -
" हे मुने मै अज्ञानी मै आपको इसका उत्तर कैसे दु , हा सामने बाले खुटे मे जो बंधी गाय आज से ९ माह बाद एक बछड़े को जनम देगी वह आपको संत दर्शन का लाभ अवश्य वतला देगा"
इतना कह कर वह छोटी सी चिडियाँ वही दम तोर दिया.
अब नारद जी ने सोचा की ए क्या चक्कर है , प्रभु ने मुझ यहे कौन से चक्कर मे डाल दिय. जरुर इसमे प्रभु का इसमे कोइ लिला छुपा है.
अब नारद जी ९ माह बाद उस गाए के पास गए , जहां गाए सचमुच एक बछड़े को जनम दी थी, अत: नारद जी वही सवाल उस बछड़े से किया |
परन्तु वह बछड़ा उनको कहा की " हे मुने मै तो अभी जनम लिया मै परम अज्ञानी जीव आपको आपके सवाल का जवाब देने मे पुर्णत: असमर्थ हु
प्रन्तु आपको इतना बतला सकता हु की आज से ठीक ९ महीने बाद इस राज्य के परम प्रतापी राजा, जो की परम दयालु तथा संत सेवा मे अग्रगणी है
उनकी
रानी उत्तरोत्तर एक परम मेधावी, हरि भक्त , परम प्रतापी, प्रजा पालक बच्चे का जनम देने वाली है , वह आपको संत दर्शण का लाभ अवश्य वतला कर आपको सप्रमाण संतुष्ट करेगा"
इतना कह कर वह बछड़ा भी अपना प्राण वही त्याग दिया.
नारद जी के पास कोइ दुसरा रास्ता न था.
इधर उस बछड़े के कथनानुसार कथित राजा की रानी ने ९ माह बाद एक बहुत सुन्दर बच्चे विलक्छण बच्चे को जनम दिया, वह वालक देखने से ही परम विलक्छण था. उसके चेहरे पर असीम तेज था. राजा के घर मे खुशियां मनाइ जा रही थी.
अत: अव नारद जी अपना वेश एक साधु का वनाकर राजा के पास पहुचा और वालक के दर्शन की इक्छा एकातं मे मिलने के लिय किया.
राजा तो संत प्रिय थे ही अत: उन्होने वालक को साधु को सोप कर कहा कि
" हे मुनी वर मेरा अहो भाग्य की आप का आशिर्वाद मेरे पुत्र को प्राप्त होगा.
यह तो मेरा परम अहो भाग्य की आप इसवक्त पधारे . इसको आप अपना आशिस प्रदान करे."
नारद जी डरते डरते ,( क्योकि जो भी मिला वह शरीर छोड़ दिया, )
अपना सवाल उस वालक से पुछा की हे पुत्र क्या तुम संत दर्शन का लाभ मुझे बता सकते हो. देखो कही अन्य किसी दुसरे जगह भेझ कर तुम भी अपना शरीर न छोड़ दो."
अव वह वालक नारद जी को भाव विभोर हो कर कहा
" हे मुने श्रेष्ठ आप तो स्वयं परम ज्ञानी है सव जानते हुए लोगो को ज्ञान देने के लिय आपने प्रभु की इस विचित्र लिला मे शरीक हुए है."
फीर भी सुनिय यह आप जैसे संत दर्शन का लाभ ही है की मै अपने तीनो विगत जनम ( कीड़ा फिर चिड़ियाँ , फिर गाए का बछड़ा बनते हुए)
म आपका दर्शन प्राप्त कर यह मनुष्य तन पाया वो भी हरि भक्त के घर मे. यही है संत दर्शन का लाभ.
अब जरा सोचिय उसके भाग्य का क्या कहना जो कृपालु जी जैसे संत, जो कि खुद राधा तत्व हैं, का दर्शण किया है या उनका अनुपालक है या होगा.
प्रेम से बोलिय श्री महाराज जी की जय ।
Radhey Radhey
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