मुक्ति की कामना तो भुक्ति से भी भयानक हैं |" गुणरहितं कामनारहितं प्रतिक्षण वर्धमानम् " ( नारद जी )" सर्वाभिलाषिताशुन्यं ज्ञानकर्माद्यनावृतम् " ( रुपगोस्वामी)" अहैतुक्यव्यवहिता या भक्ति: पुरुषोत्तमे " ( वेदव्यास )
मुक्ति की कामना तो भुक्ति से भी भयानक हैं | " गुणरहितं कामनारहितं प्रतिक्षण वर्धमानम् " ( नारद जी ) " सर्वाभिलाषिताशुन्यं ज्ञानकर्माद्यनावृतम् " ( रुपगोस्वामी) " अहैतुक्यव्यवहिता या भक्ति: पुरुषोत्तमे " ( वेदव्यास ) तात्पर्य यह कि सभी शास्त्रों का यही निर्विवाद सिद्धान्त है , कि मौक्षपर्यन्त की इच्छायें भगवत्प्रेम में बाधक हैं | इस विषय में तुलसीदास का एक दोहा मुझे अत्यन्त प्रिय लगता है :- बध्यो बधिक पर्यों पुन्यजल | उलटि उठाई चोंच | तुलसी चातक प्रेम पट | मरतहुं लगी न खोंच || अर्थात एक बहेलिये ने , एक चातक को बाण मारा | वह चातक पुण्यसलिला भगवती - भागीरथी-गंगा में बाण से बिंधा हुआ गिर गया , किंन्तु उसन...