आवृत्तिरसकृदुपदेशात्
श्री महाराज जी :- एक साधक के लिए तत्वज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है! तत्वज्ञान ही हमारी नींव है । तत्वज्ञान यदि कमजोर होगा, तो साधना परिपक्क कैसे होगी? कभी मन में नहीं सोचना है कि हमने बहुत तत्वज्ञान सुना है। हम सबको सुनते हैं, हम बहुत जानते हैं क्योंकि हम रोज तत्वज्ञान का श्रवण करते हैं, यह निरा अहंकार है। वास्तविक सुनना माने होता है, सुनकर तदनुसार उसका मनन-निदिध्यासन करते हुए उसे कर डालना। उसको कहते हैं सुनना ! ऐसे सुनने से क्या फायदा । इसलिए शास्त्रों में एक सूत्र बना।
आवृत्तिरसकृदुपदेशात्.....।
सद्गुरु से तत्वज्ञान बार-बार सुनो, समझो ताकि उपदेशों की आवृत्ति होती रहे। प्रश्न उठता है कब तक सुनें ? उत्तर है जब तक भगवत्प्राप्ति नहीं हो जाए। भगवत्प्राप्ति तक सुनना है क्योंकि हमारी चित्तवृत्ति का कोई भरोसा नहीं। मान लीजिए हममें पूर्व जन्म के अच्छे संस्कार हैं। अब वह समय भी आ गया, जब अच्छे संस्कार के कारण हमारी चित्तवृत्ति की दशा बहुत बढ़िया है और संयोगवश हम उस समय गुरु के पास बैठे हैं। अब गुरु का उपदेश हमारे कर्णरंधों से हमारे चित्त में गया, उनकी बात तत्क्षण हमारे हृदय को छू गई और बात बन गई। हमें नहीं पता कब किस समय बात बन जाए। हमें क्या पता पूर्व जन्म में क्या कमाल किया है? सब भगवत्कृपापात्र हैं। क्या पता किस समय किसका वह संस्कार आ जाए और कृपा हो जाए ।
इसलिए शास्त्र कहते हैं कि सदा तत्वज्ञान सुनते रहो । क्या पता किस समय कौन-सी बात लग जाए और हमारा काम बन जाए और हममें एक बहुत विशाल परिवर्तन आ जाए। तो हमें कल्याण के लिए क्या करना है? उनसे प्रेम करना है, उनको पाने का उपाय करना है । जो आप कर रहे हैं। तेजी से करेंगे, जल्दी मंजिल को पाएँगे। आराम से चलेंगे, आराम से पाएँगे । नहीं चलेंगे, तो नहीं पाएँगे । सीधी-सीधी बात। तत्वज्ञान की इसी परम अनिवार्यता को लक्ष्य करके चैतन्य महाप्रभु ने कहा है:-
सिद्धांत बलिया चित्ते ना कर अलस।
:- श्री महाराज जी ।।
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