संसार में किसी बिषय बस्तू व्यक्ति से प्रेम करने में दुख मिलता है और किसी दिव्य प्रसनैलिटी से प्रेम करने में सुख मिलता है , ऐसा क्यों ?

अच्छा चलिए , आप हीं बतलाइए , आप अपने गुरू से तथा ईष्ट से प्रेम करते हैं और कहीं पर भी कोई अनजाना व्यक्ति उनका नाम लेने वाला उनसे प्यार करने वाला आपको मिलता है तो आपको खुशी होती है न ? 
हां बहुत खुशी होती है ।
क्या आपका उससे आत्मीयता का अनुभव होता है न ? 
हां होता है । 
आपको उससे बात करने का मन करता है आप उसे अपना समझते हैं न ? 
हां समझते हैं ! 
जानते हैं ऐसा क्यों होता है ? 
ऐसा इसलिए होता है कि भगवान और गुरू सर्वव्यापक हैं सबके ह्रदय में है वो दिव्य है , माया से परे है , उनमें अनलिमिटेड रस है , अनलिमिटेड आनंद है इसलिए जो भी जीव इस बात को मानता है और उसे यदि कहीं भी ऐसा व्यक्ति मिल जाता है तो उसे बहुत सुख मिलता है । यहां निष्काम प्रेम है आपका उनसे , इसलिए सुख मिलता है जानकर कि जिसे हम प्रेम करते हैं उनसे बहुत लोग प्यार करता है । 

अब आईए आप अपने पति से प्रेम करते हैं या कोई अपनी पत्नी से प्रेम करता है और यदि फिर कहीं किसी व्यक्ति से आप सुन ले या आपके कान में यह बात सुनाई दे कहीं से कि कोई आपके पति का नाम लेकर यह कहें कि वो भी उसी से प्रेम करती है तो आपको कितना क्रोध आता है । कितना दुख मिलता है ? 
ये दुख इसलिए मिलता है कि आप चाहते हैं कि संसार में हम जिससे प्रेम करते हैं उससे कोई दुसरा प्रेम न करें । क्योंकि यहां सकाम प्रेम है , स्वार्थ युक्त प्रेम है । संसार में आप जिससे प्रेम करते हैं उसमें रस नहीं है , आनंद नहीं है , वो माया बद्ध है । 
यही अंतर है निष्काम और सकाम प्रेम में । 
निष्काम प्रेम आनंददायक होता है और सकाम प्रेम दुखदायक होता है ।
अत: भक्त चाहता है कि जिस गुरू से और ईष्ट से वो प्यार करता है, उनसे अधिक से अधिक जीव प्यार करे , उनका नाम लें , उनका गुण गाएं , उनकी तारीफ करें , स्तूति करें ।
दिव्य बिषय बस्तू व्यक्ति से प्रेम करने से आनंद मिलता है क्योंकि उनमें अनलिमिटेड रस है, अनलिमिटेड आनंद है , अनलिमिटेड सुख है और किसी संसारिक बिषय बस्तू व्यक्ति से प्रेम करने में दुख मिलता है क्योंकि उसमें दुख है , ईर्ष्या है , राग तथा द्वेष है काम तथा क्रोध है ।
अत: हम आप जिस तरह के पात्र या प्रसनैलिटी से प्रेम करेंगे , हमें वैसा फल मिलेगा , यह सिद्धांत अकाट्य है । 
अत: दुख पाना चाहते हैं तो संसार से प्यार कर लें ! सुख पाना चाहते हैं तो भगवान और गुरू से प्यार कर ले , यह तो हमारे हाथ में है ।

इसलिए श्री महाराज जी ने कहा है कि 
दिव्य प्रसनैलिटी से प्यार करोगे तो सुख मिलेगा और माया बद्ध जीव या बिषय बस्तूओं से प्यार करोगे, अटैचमेंट रखोगे तो दुख मिलेगा यह स्वाभाविक है। 
यही उत्तर है एक व्यक्ति के प्रश्न का । आशा है यह सिद्धांत आप समझ गए होंगे :- श्री राधे ।

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