कलियुग केवल नाम आधारा ,सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा ।।
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम केवलम् ,
कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा ।।
नाम के अतिरिक्त क्ल्याण का और मार्ग नहीं। कलयुग में बहुत दोष है। दोष से युक्त है यह कलयुग! लेकिन दोषयुक्त होने पर भी इसमें एक सबसे बड़ा गुण है और यह गुण स्मस्त दोषों को ढके हुए हैं । यह एक गुण अन्य दोषों पर भारी पड़ता है।
कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा ।।
यानि कलयुग में कोई साधक भगवान में ध्यान स्थिर करके भगवन्नाम का सहारा लेता है , तो " गतिरन्यथा" - उसकी उत्तम गति एक मात्र भगवन्नाम लेने से हो जाती है । अन्यत्र कहीं जाने की भटकने की कोई आवश्यकता नहीं है । अन्य कोई उपाय करने की आवश्यकता नहीं हैं । इस कलियुग में जीव के उद्धार का सबसे सरल मार्ग है, माया से मुक्ति का यह सबसे बड़ी दवा है ।
गौरांग महाप्रभु ने कहा है कि -
संकिर्तन यज्ञे करे कृष्ण-आराधन ।
सेई तो सुमेधा पाय कृष्णेर चरन ।।
सुमेधा माने बुद्धिमान , संकिर्तन यज्ञ माने - मन से भगवान के नाम का सेवन करना , संग करना अपने आपको अर्पित करना । तो यहां गौरांग महाप्रभु कहते हैं कि इस कलियुग में कोई जीव यदि भगवान का नाम धारण करलें तो वो सबसे बुद्धिमान जीव कहा जाएगा ।
तो ऐसे ही श्रद्धावान जीव का अनुराग हरि और गुरू के चरणों में होगा । और उसी को श्री कृष्ण के चरणों की रति मिलेगी । और वो जीव अपने असली लक्ष्य को पा लेगा , सदा के लिए मालामाल हो जाएगा ।
तुलसीदास ने भी कहा है :-
राम ही सुमिरिअ, गाइअ रामहिं
संतत सुमिरिअ नाम गुन ग्रामहि ।
कलियुग केवल नाम आधारा ,
सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा ।।
यानि कलयुग में केवल भगवान का नाम , उनका गुण , उनके धाम , उनके संत , उनके हीं लीला का गुणगान करने वाला का उद्धार निश्चित है अन्य का नहीं ।
अस्तु । :- श्री कृपालु मभाप्रभु जी ।।🙏❤️🙏
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