बड़े भाग्य मानुस तन पावा। सुर दुर्लभ सद् ग्रंथन गावा॥
बड़े भाग्य मानुस तन पावा।
सुर दुर्लभ सद् ग्रंथन गावा॥
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा।
पाई न जेहि परलोक संवारा॥
सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि-धुनि पछिताय।
कालहिं कर्महिं ईश्वरहिं मिथ्या दोष लगाय॥
जो न तरै भव सागर, नर समाज अस पाइ।
सो कृत निंदक मंदमति, आत्माहन गति जाइ॥ (उत्तरकाण्ड दोहा ४४)तुलसीदास जी ।
बड़े सौभाग्य से जीवों को मनुष्य का शरीर मिलता है। यह शरीर पाना देवों के लिए भी दुर्लभ है। क्योंकि देवता भगवद्प्रेम की प्राप्ति , श्रीकृष्ण के प्रेम को प्राप्त करने के लिए कोई कर्म भी कर हीं नहीं सकता , कारण कि देवता एक भोग योनि का शरीर है , आपलोग ही अनेकों पुण्य करके अनेक बार इंद्र वरूण कुबेर बने जैसे हरिश्चंद्र , राजा बलि आदि और फिर पुण्य सब समाप्त हो गया स्वर्ग के सुख को भोगने के बाद तो फिर से पृथ्वी पर पटक दिए गए कुत्ता बिल्ली गद्हा आदि के योनि में ।
देवताओं का शरीर सूक्ष्म शरीर है , और केवल मनुष्य के शरीर में हीं यह गुण है कि वो कर्म करके , भक्ति करके भगवद् प्राप्ति कर लें । ऐसे दुर्लभ शरीर को पाकर जो मनुष्य भक्ति नहीं करें , भगवद्प्राप्ति के लिए साधना नहीं करें ,उसे अंत में पछताना पड़ता है। जब मनुष्य का शरीर जीव से छिन जाता है मृत्यू के समय तब जीव के पास अपना सिर धुन-धुन कर पछताने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता। इसलिए यह आश्चर्य है कि कोई मनुष्य समय को दोष लगाता है तो कोई भाग्य को। यहां तक कि कोई ईश्वर पर दोष लगाने से भी नहीं चूकता।।
मनुष्य और जानवर दोनों में चार गुण समान है । भर्तृहरि ने जो चार गुण क्या बतलाए हैं वो है खाना खाना , सोना , डर और भोग विलास करना यानि मैथुन । यह मनुष्य में भी है और मनुषयेत्तर जीव यानि पशु पक्षियों में भी है ।
पर मेरे अनुसार तो मनुष्य का शरीर जानवर के शरीर से भी निकृष्ट है । क्योंकि मनुष्य के शरीर से दुर्गंध निकलता है किन्तु मृग के शरीर से खुशबु , उसके नाभी में कस्तुरी होता है । जो बहुत कमाल का है । उसके मरने के बाद उसके चमड़े का भी उपयोग होता है उसके हड्डी आदि का भी । उसके सिंग, हिरण का सिंग आदि का इस्तेमाल लोग करते हैं न ।
बहुत से पक्षी है जिनका शरीर बहुत खुबसूरत है , हम कहते हैं ना कि मोर जैसी चाल , गर्दन , रंग , कोयल की आवाज बहुत मिठी है , तो जानवरों का रंग , चमड़ा , हड्डी , सिंग , दांत आदि सब काम में आ जाते हैं ।
नंबर दो , पशु पक्षी समय पर सोते हैं , समय पर जागते हैं , समय पर संभोग , जितना जरूरी है उतना ही खाना खाना , लेकिन मनुष्य को देख लिजिए , खाना पीना , सोना उठना सबमें लापरवाही , अस्तु । मनुष्य का शरीर मृत्यू के बाद किसी काम का नहीं रहता , जीवित अवस्था में भी हर समय बदबू दार पसीना आदि , फिर भी मनुष्य का शरीर श्रेष्ठ है और अति दुर्लभ है ।
"बड़े भाग्य मानुष तन पावा" , सुर दुर्लभ है यह मानव देह ।
क्योंकि इसी शरीर से भक्ति करके साधना करके भगवान को भी भक्त लोग अपने मुठ्ठी में कर लेतें हैं ।
"अहं भक्त पराधिन:" ( भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ) भगवान भक्त इशारे पर नाचते हैं भक्त के पीछे पीछे चलते हैं ताकि उसका चरणधूलि उनके मस्तक पर पड़े । इतना कमाल है मानव देह में । वो भगवद् प्राप्त करके भगवान को भी अपने मुट्टी में रखता है । आपने सुना होगा । गोपियों को । वो भगवान को छाछ के लिए नचाती थी ।
मनसुख सुदामा उनको घोड़ा बनाकर उनके ऊपर बैठकर लात से मारते थे और भगवान भाव विभोर हो रहे हैं ।
तो मनुष्य का शरीर ज्ञान प्रधान , विवेक प्रधान है , । संसार में अनेकों वैज्ञानिक हुआ है अपलोग जानते हैं जो तरह तरह का शौध आदि करके अनेकों अविष्कार किए हैं , उदाहरण :- आज सभी के हाथ मोबाईल फोन , कलर टीभी है । बड़ा बड़ा हवाई जहाज ,बड़े बड़े रौकेट बना लिया , चंद्रमा पर चला जाता है मनुष्य ।
और यहां तक की निष्काम भक्ति करके भगवान को भी बस में कर लेता है मनुष्य । इसलिए मनुष्य का शरीर दुर्लभ है जिसके लिए देवता भी लालाईत रहते हैं ।
और यह मानव तन कभी कभी मिलता है । भगवान दया करके , कृपा करके किसी जीव को मनुष्य तन दे देते हैं ।
"कबहुंक क करि करूणा नर देही"
पर जब मानुष तन एक दिन छीन जाता है तब दुःख पाता है जीव , अफसोस करता है , सिर पीट पीटकर पछताता है और अपना दोष न समझकर (वह उल्टे) काल पर, कर्म पर या ईश्वर पर मिथ्या दोष लगाता है।
तो काल को दोष ,यानि समय होगा तो खुद हो जाएगा भक्ति , भगवान करा लेगें , कर्मफल यानि भाग्य को दोष और ईश्वर पर दोष लगाना कि वो नहीं चाहते कि ऐसा हो , तो इन तीनों पर दोष लगाने बाला महान मुर्ख है , वह कृतघ्न, निंदनीय और मंदमति है। अपने दोष या दुर्भाग्य को काल (कि समय बुरा है), कर्म (कि पिछले जन्म का कर्मफल है) या ईश्वर (कि भगवान ने यह मुझसे बुरा काम करवाया है) पर लगाना बहुत बड़ी नासमझी है। ऐसे भ्रम में रहकर अकर्मण्य बने रहना अपने ही नाश का मार्ग है।
( :- श्री युगल शरण जी के प्रवचन से)
टाईम करने में हुए भुल को क्षमा करेंगें ❤️🙏❤️
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