श्रीकृष्ण के 64 गुण

श्री महाराज द्वारा :- श्रीकृष्ण के 64 गुण :- अब मैं रसिक शिरोमणी नायक श्रीकृष्ण के विशिष्ट गुणों का वर्णन करता हूँ। ध्यान दो, श्री कृष्ण में 64 गुण रहते हैं।
यथा:- ' अथ नेता सुरभ्यांग:सर्वसल्लक्षणान्वित: रुचिरस्तेजसा युक्तो वलीयान् वयसान्वित:' 'नारीगणमनोहारी सर्वाराध्य: समृद्धिमान् वरीयानीश्वरश्चेति गुणास्तस्यानुकीर्तित: ' (भ. र. सि.)
अर्थात् सुन्दर अंग वाले, श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त, मनोहर, तेजस्वी, बलवान्, सदा युवावस्था वाले से, स्त्रियों के मन को हरने वाले, सब से पूज्य, ऐश्वर्य-युक्त, श्रेष्ठ, समर्थ, आदि पचास गुणों वाले श्रीकृष्ण हैं। उपरोक्त पचास गुण श्रीकृष्ण के अतिरिक्त योगीश्वरों में भी होते हैं।
अब हम पाँच गुण ऐसे बताते हैं, जो कि श्रीकृष्ण के अतिरिक्त ब्रह्माण्ड-नायक शंकर आदि में भी होते हैं।
यथा :- ' सदास्वरुपसंप्राप्त: सर्वज्ञों नित्यनूतन: सच्चिदानन्दसान्द्रांग: सर्वसिद्धिनिषेवित:'

अर्थात् सदा अपने ही स्वरुप में स्थिर रहने वाले, सबकुछ जानने वाले, नित्य ही नवीन रुप वाले, सच्चिदानन्दमय दिव्य देह वाले, समस्त सिद्धियों से उपास्य। अब पाँच गुण ऐसे बता रहे हैं जो श्रीकृष्ण के अतिरिक्त महाविष्णु में भी रहते हैं। यथा:-
'अविचिन्त्यमहाशक्ति: कोटीब्रह्माण्डविग्रह: अवतारावलीवीजहतारिगतिदायक: आत्मारामगणाकर्षोत्यमी कृष्ण किलाद्भुता:' (भ.र.सि.)
अर्थात् मन बुद्धि से अतर्क्य शक्ति रखने वाले, बार-बार अवतार लेने वाले, दैत्यों को मार कर उन्हे मुक्त करने वाले, आत्माराम सनकादिकों के भी मन को खींचने वाले।
अब सुनो, चार उन गुणों को, जो केवल श्रीकृष्ण में ही रहते हैं। ' सर्वाद्भुतचमत्कारलीलाकल्लोलवारिधि: अतुल्य-मधुर-प्रेम मण्डित-प्रिय मण्डल : त्रिजगन्मानसाकर्षी मुरलीकलकूजितै: लीलाप्रेम्णा प्रियाधिक्यं माधुर्यं वेणु रुपयों:' (भ.र.सि.)
अर्थात् लोकातीत-आश्चर्यों से युक्त-चमत्कारों द्वारा अनंत अलौकिक लीलाओं को करने वाले जिनके प्रेम -माधुर्य की समानता कोई नहीं कर सकता, ऐसे अपने प्रिय ब्रह्म-परिकर से युक्त मुरली की मधुर-ध्वनी से समस्त विश्व को मोहित करने वाले, वेणु एवं रुप -माधुर्य की परम -प्रियता से लीला-माधुरी में प्रवृद्धि करने वाले।
यह तो साहित्यिक दृष्टिकोण से गुणों का दिग्दर्शन मात्र है।
वस्तुतस्तु उनके गुणों को कौन गिन सकता है ? तथा कौन समझ सकता है ? गौरांग महाप्रभु की उक्ति के अनुसार ' श्रीकृष्णेर अनंत शक्ति' अर्थात् उनकी शक्तियाँ असंख्य हैं तथा प्रेमी -महापुरुष उन्ही समस्त शक्तियों से युक्त होतें हैं। :- श्री महाराज जी

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