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Showing posts from February, 2021

।।स्वामीं श्री कृपालु जी महाराज।।

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हमारे श्री महाराज जी जो कि पंचम मूलजगद्गुरू उत्तमई , श्रीमत्पदवाक्यप्रमाणपारावरीण , वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य, निखिलदर्शनसमन्वाचार्य सनातनवैदिकधर्मप्रतिष्ठापनसत्संप्रदायपरमाचार्य, भक्तियोगरसावतार , भगवदनन्तश्रीविभूषित श्री १००८ स्वामीं श्री कृपालु जी महाराज हैं ।  जो स्वयं परम चरम तत्त्व हैं , इन्होने अपने पुर्ववर्ति चारो मुल जगतगुरूओं ( श्री शंकराचार्य जी, श्री रामानुजाचार्य जी , श्री निम्बारकाचार्य जी और श्री माध्वाचार्य जी ) के एक पक्षिय सिद्धांतों को विना खारिज किए हुए , उनके अद्वेत्, द्वेत, द्वेताद्वेत, विशिष्टा द्वेत सिध्दांत ज्ञानों का विना खंडन करते हुए सभी का समन्वाकरण करते हुए कलिमल ग्रसित हम पतित जीवों के अज्ञानता को दुर करने का अथक प्रयास किया हैं , अपने पुर्ववर्ति जगद्गुरूओं के ज्ञान के वास्तविक अर्थों को आसान बनाकर , आसान शब्दों में चारो वेदों , पुराणों , उपनिषदों , गीता , श्री मद्भागवद् , श्री वाल्मिकि रामायण ,तुलसीकृत रामायण , चैतन्यचरितामृत आदि ग्रंथों का प्रमाण प्रस्तुत करते अंत में सगुण साकार पुर्ण ब्रह्म श्रीराधाकृष्ण की हीं उपासना पर वल दिए हैं ।  भग...

संत दर्शन का लाभ

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संत दर्शन का लाभ:- मै यह श्री महाराज जी के कृपा से यह सुना और आपको सुना रहा हुं जो अक्छरस सत्य है. बड़ा प्रेरक है  "एक बार नारद जी भगवान कृष्ण से पुछा की " हे प्रभु सन्त दर्शऩ का लाभ कृपा करके वतलाए" भगवान ने कहा "हे नारद पास के गांव मे नाली में एक कीड़ा रहता है तुम उससे जाकर यह सवाल करो , वह तुम्हे संत दर्शन का लाभ वताएगा" अब नारद जी खुद एक ज्ञानी उनको यह वात प्रभु का वड़ा अजीव लगा की मुझे नाली का कीड़ा क्या वतलायगा फिर भी प्रभु का आदेश समझ कर वे उस कीड़े से मिले और संत दर्शन का लाभ पुछा. नाली का कीड़ा को बड़ा आश्चर्य हुआ की भगवान को मेरा भी भान है , वह विभोर हो गया और नारद जी को वड़ी विनम्रता के साथ उत्तर दिया की  " हे मुनी वर मै एक तुक्छ प्राणी आप को संत दर्शन का लाभ कैसे वतलाऊ , हा इतना वतला सकता हुं की सामने वाले पेड़ की डाली पर आज से ठीक तीन माह बाद एक चिड़ियां बैटेगी वह आपको संत दर्शन का लाभ अवश्य वतला देगी "  इतना कह कर वह कीड़ा अपना प्राण उसी छण छोड़ दिया. नारद जी अब तीन महीने इन्तजार के बाद उस पेड़ के पास गय,  वास्तव मे एक चिडियाँ वहा बैठी म...

भक्ति रस से ओत प्रोत ।।एहि बिधि कृपा रूप गुन धाम रामु आसीन ।धन्य ते नर एहिं ध्यान जे रहत सदा लयलीन ।।

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भक्ति रस से ओत प्रोत ।। एहि बिधि कृपा रूप गुन धाम रामु आसीन । धन्य ते नर एहिं ध्यान जे रहत सदा लयलीन ।। यहां तुलसीदास जी लंका का प्रसंग बता रहें हैं । वे कहते हैं - पता नहीं क्यों मुझे यह प्रसंग और भगवान का यह रूप बड़ा सुंदर लगता है, जब लंका में प्रभु राम पहुँचे और एक पर्वत के शिखर की ऊँचाई पर बैठ गए । सुबेल है उस पर्वत का नाम । तुलसीदास जी कहते हैं कि उस कृपा के रूप का जो भी नारी-नर स्मरण , ध्यान करते हैं वे बड़े धन्य हैं । इस पर प्रभु राम ने तुलसीदास जी से पुछा - क्यों, तुम्हे मेरा अयोध्या का रूप पसंद नहीं आया ? मिथिला का मधुर रूप पसंद नहीं आया ? अरे चलो , चित्रकूट का बनवासी रूप बड़ा बिचित्र सुन्दर है , वही पसंद आ जाता ? लेकिन तुझे लंका के मेरे इस रूप में ऐसा क्या आकर्षण प्राप्त हुआ कि तूने इस चौपाई को लंका कांड में लिखा है । ऐसी क्या बात है यहां ?  इस पर तुलसीदास जी कहते हैं - देखिय प्रभु ! यदि मैं अयोध्या का चिन्तन करूँगा तो मुझे अपने ह्रदय को अयोध्या बनाना पडेगा । यदि मिथिला की आपकी मधुर लीलाओं का चिन्तन करूँगा तो मेरा ह्रदय मधुर होना चाहिए । यदि चित्रकूट के उस संन्यासी-योगी र...

मानव देह का महत्व- श्री कृपालु महाप्रभु जी ।

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मानव देह का महत्व मानव देह का महत्व :- संसार का प्रत्येक जीव कर्मशील दिखाई देता है | पशु - पक्षी , कीट- पतंग सभी तो कर्म करते हैं | यहाँ तक कि स्वर्ग के देवता भी कर्म करते हैं | किंतु इनमें से किसी का भी कर्म स्वतंत्र नहीं है | या यूँ कह लीजिए की उनका कर्म परतंत्र है | वो पुरुषार्थ द्वारा ऐसा कर्म नही कर सकते , जिससे वे अपने अनंत जन्मों के संचित कर्म को भस्म कर दें और भविष्य के अनंत काल को बना लें | चूँकि यह कमाई नाम की चीज़ , पुरुषार्थ नाम का तत्व उनके साथ नहीं रह सकता , इसलिए ये सब भोग योनि के अंतर्गत आते हैं | आइए , अब हम मानव योनि पर विचार करें | मानव योनि ही एक ऐसी योनि है , जिसमें आकर हम वास्तव में कर्म कर सकते है | मानव देह बड़ा कमाल का है | एकमात्र मानव देहधारी जीव ही यह शक्ति रखता है कि वह जिस जीव से चाहे अपने अनुरुप कर्म करवा ले , उनको गुलाम बना ले | उनके द्वारा अपनी सेवा ले | पशु-पक्षी , कीट-पतंग , अथवा देवता सभी आनंद चाहते हैं , लेकिन चौरासी लाख योनियों मे यह शक्ति सिर्फ मानव को ही प्राप्त है कि वह अपने सुख के लिए अन्य चेतन जीवों को गुलाम बना ले , अपना दास बना ले | इन चेतन ...

भक्ति बड़ा सरल है, ‌कोई नियम निषेध आदि नहीं।

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ज्ञानमार्ग तो बड़ा कठिन है ‘ग्यान पंथ कृपान कै धारा’ (मानस, उत्तर॰ 111। 1), किन्तु भक्ति बड़ा सरल है, ‌कोई नियम निषेध आदि नहीं- ‘भगति कि साधन कहउँ बखानी सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी ॥’। (मानस, अरण्य॰ 16। 3) भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने जीवों के लिये अपनी प्राप्ति का मार्ग बड़ा सरल बतलाऐं हैं ‒ अनन्यचेता सततं यो मां स्मरति नित्यश:।  तस्याहं सुलभ: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन: ॥ (गीता 8। 14) ‘हे पार्थ ! अनन्य भाव वाला जो जीव नित्य-निरन्तर मेरा स्मरण करता है उस जीव के लिये मैं सुलभ हूँ। ’ ज्ञानमार्गपर चलनेवाला तो अपने साधन के बल को मानता है, पर भक्त की यह विलक्षणता होती है कि वह अपने साधन का बल मानता ही नहीं। वो तो शरणागति का भाव रख कर भक्ति करता है।  मैं इतना जप करता हूँ, इतना तप करता हूँ, इतना पुजा पाठ करता हुं, इतना तिरथ करता हुं, इतना ध्यान करता हूँ, इतना सत्संग करता हूँ, इतना दान करता हुं ‒इस तरह भीतर में अभिमान रहने से भक्ति प्राप्त नहीं होती।  जिनका सीधा-सरल स्वभाव है, जो भगवान्‌ के कृपावल पर निर्भर रहते हैं और हरेक परिस्थिति में सेवा भाव में विभोर रहते हैं, उन्हीं को भक्ति प्राप्त...

भगवत्प्राप्ति में बाधक मानस रोग ।

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**भगवत्प्राप्ति में बाधक मानस रोग ******* प्रत्येक जीव ( व्यक्ति) मन के रोगों से ग्रसित है | पर ऐसे विरले हैं जो अपने मन के रोगों को देख पाते हैं | उसका विश्लेषण कर पाते हैं कि हमारे मन में रोग कहाँ है और किस रुप में है कि मन के रोगी को यह प्रतीत ही नही होता कि उसे रोग हुआ है | शरीर में रोग होने पर साधारणतया व्यक्ति को अनुभव होने लगता है कि वह बीमार हो गया है , जिससे स्वाभाविक रुप से उसके मन में स्वस्थ होने की तीव्र आकांक्षा रहती है | परंतु मन का रोगी यह अनुभव ही नहीं करता कि वह अस्वस्थ है मानसिक रुप से | अत: उसमें स्वस्थ होने की प्रवृति ही नही दिखाई पड़ती | इसके साथ एक समस्या और जुड़ी हुई है मन के रोगी के साथ कि वह हर सामने वाले व्यक्ति को मनोरोग से ग्रस्त देखता है | वह यदि स्वस्थता की चिंता भी करता है , तो दूसरों की | इसका तात्पर्य यह है कि स्वयं को पूर्ण स्वस्थ मानता है | इसलिए हम जब भी चर्चा करते हैं , तो दूसरों की बुराई की | इसका मतलब हमें अपनी बुराइयों की प्रतीति ही नहीं हो रही है और हम सोचते है कि सारी बुराइयाँ दूसरे लोगों में ही है , हममें बिल्कुल नहीं है | प्रत्येक व्यक्ति सोच...

चार्वाक् कौन है ? यह स्वर्ग के बृहस्पति हैं । देवताओं के गुरु बृहस्पति, बुद्धि की औथारिटी, उनका ये सिद्धांत है चार्वाक् । चारू-वाक्, मीठी-मीठी लगने बाली वाणी । ये क्या कहते हैं।

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श्री महाराज जी- तो आप लोग चार्वाक् के सिद्धांत से भी नीचे वाले हैं -  चार्वाक् कौन है ? यह स्वर्ग के बृहस्पति हैं । देवताओं के गुरु बृहस्पति, बुद्धि की औथारिटी, उनका ये सिद्धांत है चार्वाक् । चारू-वाक्, मीठी-मीठी लगने बाली वाणी । ये क्या कहते हैं- यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत्। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत: ।।                                                 (चार्वाक्)  "जब तक जियो, सुख से जियो, कर्जा करके घी पियो । मरने के बाद फिर कौन आता है, कौन जाता है , सब बकवास। " ये शरीर को हीं सब कुछ मानते हैं, अपना सुख यानी शरीर का सुख । वैसे तो आप लोग हँसेगे कि ये महामूर्खता , ये बृहस्पति का चलाया हुआ है ?  ऐसा हुआ था एक बार कि देवताओं और असुरों का युद्ध हुआ तो बहुत असुर मारे गए । तो असुरों के गुरु शुक्राचार्य, उन्होंने कहा यह तो बड़ा गड़बड़ हो गया । हमारे तो तमाम असुर मारे गए , अब तो देवता लोग हमेशा दबा लेंगे । तो वो गए ...

भक्ति मार्ग ।

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जो प्यारे भाई बहन ऐसे लोग जो श्री महाराज जी के द्वारा दिए गए तत्त्व ज्ञान से अनभिज्ञ हैं और फेस बुक पर पढ़ कर बहुत से सबाल करते हैं , उनके शंका का समाधान करना  मुझ जैसे क्षूद्र जीव के लिए संभव नहीं है । इसके लिए आपको श्री महाराज जी के पुस्तकों को मंगा कर पुरा पढ़ना पड़ेगा । या उनके प्रचारकों से जुड़ना हीं होगा । श्री महाराज जी जगद्गुरू उत्तमई है । वेद की सभी ऋचाएं पानी भरती है उनके यहां और उनके शरण में हीं रहती हैं हमेशा ।  फिर भी श्री महाराज जी के कृपा से , पुज्यनियां मां के आनूगत्य में थोड़ी बहुत जानकारी जो मुझे है , उस आधार पर केवल इतना हीं कह सकता हुं संक्षेप में कि बहुत सारे लोगों का ९९% का सबाल , कर्म कांड - ज्ञान मार्ग या राज योग से है । श्री महाराज जी ने भक्ति मार्ग को हीं उत्तरोत्तर सरल और उत्तम मार्ग  सिद्ध किएं हैं ।  वेद में अस्सी हजार श्लोक , कर्मकांड-ज्ञानादि पर है और केवल बीस हजार श्लोक भक्ति योग पर है । चूँकि,  'पुराण' वेद से पहले प्रकट हुए और वेद को आसानी से समझने के लिए हीं प्रकट हुए हैं , अत: स्वाभाविक है कि पुराणों में भी ८०% बातें कर्मकांड-ज...

आप सबको एक सच्ची कहानी शेयर कर रहा हुं अपनी मां राधा रानी के बारे में ।

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आप सबको एक सच्ची कहानी शेयर कर रहा हुं अपनी मां राधा रानी के बारे में । ये मेरे ठाकुर और ठकुरानी है मेरे घर और मन के मंदिर में रहते हैं हमेशा ।  मैं पिछले पांच साल से लगातार राधा रानी का मुकुट ठीक करता रहता हुं , उनके मुकुट को बढ़िया से बढ़िया एडेसीभ से पीछे के चुनरी से चिपकाया । पर मेरी ठकुरानी हमेशा मुकुट को निचे झुका लेती हैं । मैं काफी प्रयास किया हजारों बार अबतक , लेकिन वो हमेशा हीं मुकुट को झुका लेती हैं । कभी भी  मुकुट अपने माथे कर सीधा नहीं रहने देती । मैं बहुत मिन्नत किया । उनके उपर थोड़ा प्यार से क्रोध भी किया , पर वो नहीं मानती है । समझाने पर , रोने गिड़गिड़गिराने पर थोड़ा देर रखती है सीधा और जैसे हीं मैं काम करने चला जाता हुं बाहर तो वो मुकुट को झुका लेती हैं । अंत में एक दिन मैं खुब रोया और कहा उनको की अब कि "मैं आपका मुकुट अब सीधा नहीं करूंगा । मैं थक गया , लाख जतन कर लिया , बढ़िया से बढ़िया गोंद लगाया पर आप अपना मुकुट क्यों झुका लेती हैं मैं समझ नहीं पाता हुं ।  तो एक दिन ( कुछ दिन पहले ) वो और ठाकुर जी मेरे सपने में आए और मुझे कहने लगी - " मेरे वेटे मैं ठा...