निराशा क्यों आती है ।
श्री महाराज जी :- जो प्राप्त वस्तु है उसका अनादर करने से निराशा आती है। सोचो, हमको मानव देह मिला, भारत में जन्म मिला महापुरुष मिला, तत्वज्ञान मिला, उसके द्वारा दिया हुआ, तो सात अरब आदमियों में कितने आदमी हमारे बराबर है जिनको ये सब सौभाग्य प्राप्त है। कितने हजार आदमी है, कितने लाख आदमी है जिनको इतनी भगवत्कृपा मिली है जितनी हमको मिली हैं।
तो तुम्हारे दिमाग में ये आएगा कि ऐसे तो बहुत कम लोग है। बार - बार सोचो, कितनी बड़ी भगवत्कृपा मेरे ऊपर है अगर मृत्यु के एक सेकण्ड पहले भी आपको यह बोध हो गया कि कितना सौभाग्यशाली हूँ कितनी भगवत्कृपायें मेरे ऊपर हुई है।
1) देव - दुर्लभ मानव देह अनन्त जीवों में किसी - किसी भाग्यशाली को ही मिलता है, फिर मेरे जैसा सौभाग्यशाली कौन होगा जिसको ऐसा गुरु मिला जो केवल कृपा ही करता है। जब उनका अनुग्रह प्राप्त है तो निराशा की क्या बात है। धिक्कार है, मेरे जीवन को। अपनी बुद्धि को उनके श्रीचरणों में डाल दो तो निराशा हट जायेगी। और अगर हट गई और मृत्यु हो गई, तो अगले जन्म में फिर आपको आशावाद के अनुसार ही फल मिलेगा।
2) प्राप्त कृपाओं का बार - बार चिन्तन करना ही निराशा से बचने का इलाज है।
3) निराशा आने का मतलब ये है कि उसने सारी भगवत्कृपाओं पर लात मार दिया। जितनी भगवत्कृपा उसके ऊपर हुई, महापुरुष कृपा हुई, उसका बार - बार चिन्तन नहीं किया। निराशा आते ही बुद्धि को फटकारना चाहिए फिर तुमने अपराध किया, क्या कृपा बाकी है जो तुम्हारे ऊपर नहीं हुई। प्रतिकूल चिन्तन की धारा चलने न पावे, चिन्तन शुरु होते ही तुरन्त समाप्त करो।
4) जब ये ज्ञान है कि निराशा हानिकारक चीज़ है और वो आने लगी, होशियार क्यों नहीं हो गये, धिक्कारा क्यों नहीं, अपने - आपको। तुरन्त सही चिन्तन शुरू क्यों नहीं किया ? जब जानते हो कि चिन्तन में अनन्त शक्ति है, राक्षस बना दे, महापुरुष बना दे। सारा काम चिन्तन का है और कुछ है ही नहीं, विश्व में। अधिक चिन्तन जिस चीज का करोगे वैसे ही बन जाओगे। अच्छाई का चिन्तन करो अच्छे बन जाओगे, बुराई का चिन्तन कुछ दिन करो, कितना भी अच्छा हो, बुरे बन जाओगे। चिन्तन की लिंक के अनुसार उत्थान - पतन दोनों संभव है। इसलिए मन को खाली नहीं रखो, गलत संग में नहीं डालो, गलत व्यक्तियो से बात न सुनो, न करो और कही कान में पड़ जाये तो उसको ऐसे फेक दो जैसे कंकड को खाना खाते समय फेक देते है।
5) हर जगह, हर बात में तुमसे आगे लोग है अब भी है। बुद्धि में आगे हैं, सुन्दरता में आगे हैं, बल में आगे है तो क्या कोई आदमी जहर खा लेगा, इसके पीछे। क्यों पागल हुये जा रहे हो ? स्कूल प्रिंसिपल हमेशा ऊपर बैठती है, वो तुम्हारी हेड है। अरे ! हेड है तो क्यों मरी जा रही हो। अरे ! वो हेड तो रहेगी ही। तुम प्रिंसिपल हो जाओगे, तो तुम्हारे ऊपर एक और रहेगा कोई। कोई न कोई तो आगे रहेगा ही। तो इन सब बातो को सोचना चाहिए, विवेक से और निराशा की बीमारी को पैदा न होने दे, पैदा हो जाये तो बढ़ने न दें।
6) गुरु कृपा का बार - बार चिन्तन करो निराशा अपने - आप चली जायेगी।
चिता तो जलावे शव गोविंद राधे।
चिन्ता जलावे जीवित को बता दे। । 1681। ।
नर देह को न कोसो गोविंद राधे।
नर देह ही तो तोहिं हरि ते मिला दे। । 878। ।
राधे राधे बोल मन गोविंद राधे।
सुर दुर्लभ तनु सफल बना दे। । 879। ।
रचना :- राधा गोविंद गीत :-जगद्गुरु श्रीकृपालु जी महाराज।
Radhe Radhe 🙏 very nice 👍
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