धर्म का पालन किया जाता है रक्षा नहीं । धर्म का पालन करने से धर्म जीव की रक्षा करता है । जीव धर्म कि रक्षा नहीं कर सकता । इसलिए हम सनातन धर्मावलंबियों को अपने धर्म का पालन करना अनिवार्य है ।
धर्म का पालन किया जाता है रक्षा नहीं ।
धर्म का पालन करने से धर्म जीव की रक्षा करता है । जीव धर्म कि रक्षा नहीं कर सकता ।
इसलिए हम सनातन धर्मावलंबियों को अपने धर्म का पालन करना अनिवार्य है ।
धर्म का मतलव जो धारण करने योग्य हो ।
धर्म क: ?
धारयेति इति धर्म : ।।
धारणात् धर्म इत्याहुः धर्मों धारयति प्रजाः ।
यः स्यात् धारणसंयुक्तः स धर्म इति निश्चयः ।।
( महाभारत )
"धर्मः ध्रियते लोकः अनेन इति धर्मः,
धरति धारयति व लोकम् इति धर्मः,." ( महाभारत)
तो अधर्मी और विधर्मी से सदैव सचेत और सावधान रहना चाहिए। शास्त्रों के अनुकूल चलें, मन से तो बंदर चलता है।
वेद कहता है-“धर्मं चर,” अर्थात् धर्म का पालन करो;
“धर्मेण सुखमासीत्,” अर्थात् धर्म से लौकिक सुख मिलता तथा प्रारब्ध अच्छा बनता है;
“धर्मान्न प्रमदितव्यम्”, अर्थात् धर्म में प्रमाद या असावधानी नहीं करनी चाहिये।।
धर्म क्या है ? जिसे धारण किया जा सके वो धर्म है । जैसे आग का धर्म है गर्मी प्रदान करना , जलाना । जैसे बर्फ का धर्म है ठंडक प्रदान करना ।
उसी प्रकार जीव की अवस्था के अनुसार हमारे सनातन वैदिक धर्म में अलग अलग धर्मो का पालन करना अनिवार्य बतलाया गया है ।
गुरू शिष्य परंपरा के शिष्यों का धर्म है अपने गुरू के शरणागत होकर , अनन्य होकर केवल उनके हीं द्वारा बतलाए गए उपासना पद्धतियों ( मार्ग ) को पुरे मनोयोग से पालन करना । अपने गुरू के आज्ञा का पालन करना तथा अपने गुरू एवं ईष्ट की पुरे मनोयोग एवं निष्ठा से सेवा और भक्ति करना ।
कुछ धर्म सभी जीवो के लिए समान रूप से पालन करना आवश्यक है । जैसे मनुष्यों के लिए समान रूप से धर्म जो बतलाया गया है वो है मानवता , दया , त्याग , क्षमा , अन्य निरीह प्राणियों कि रक्षा करना । बच्चों तथा स्त्रियों की रक्षा करना । अपने धर्म स्थलों , बाग बगीचे , वन्य पदार्थों तथा जानवरों एवं पशु-पक्षियों तथा प्रकृति की रक्षा करना । विमार तथा वेवस एवं लाचार का मदद करना ।
माता पिता की आज्ञा मानना एवं उनकी सेवा करना । आचार्यों एवं गुरू जनों एवं अपने से उम्र में बड़े सज्जन पुरुष एवं नारियों को सम्मान देना । अपने से छोटे को स्नेह देना , रक्षा करना , वेदज्ञ एवं ज्ञानियों को सम्मान देना । कर्म कांड कराने वाले पंडितों तथा भगवद् प्रेमियों को सम्मान देना । दान देना । दरवाजे पर आए अयाचक ब्राह्मणों एवं भिक्षुओं को अन्न वस्त्र भोजन कराना एवं दान देना ।
शिक्षक का धर्म है बिद्यार्थियों को सही शिक्षा देना ।
विद्यार्थियों का धर्म है सही ज्ञान हासिल करना , बिद्या अर्जित करना । युवाओं का धर्म है अर्थ उपार्जन करना तथा असहायों की मदद करना , समाज , देश के तरक्की के लिए अपने द्वारा अर्जित धन से कर देना ।
पति का धर्म है पत्नी का भरण पोषण तथा रक्षा करना । पत्नी का धर्म है पति कि सेवा करना ।
मित्र का धर्म है मित्र को सही मार्ग पर चलने कि प्रेरणा देना तथा एक दुसरे कि सहायता करना जरूरत पड़ने पर ।
बुजुर्गो का धर्म है अपने अनुभव के आधार पर अपने अगले पीढ़ियो को सन्मार्ग दिखाना , उस पर चलने के लिए प्रेरित करना । सही गलत का जानकारी देना तथा उसे गुमराह होने तथा भटकने से रोकना ।
वाणप्रस्थियों का धर्म है संसार को सही मार्ग दिखाना तथा संसार से वैराग्य लेकर मौक्ष के लिए साधना , तपस्या करना ।
संन्यासियों का धर्म है संसार से पुरी तरह विमुख होकर बिना किसी आडबंर के अपने मन को केवल और केवल भगवान को समर्पित करके उनकी ही आराधना करना । एक पल के लिए भी उनका मन संसार के किसी भी प्रपंच में न जाएं ।
पुत्र और पुत्री का धर्म है अपने माता पिता कि आज्ञा मानना एवं उनके द्वारा दिए गए हिन्दू संस्कार और संस्कृति के अनुसार चलना , निभाना ।
माता पिता का धर्म है संतान का पालन पोषण करके परिवार , समाज , देश तथा धर्म के लिए योग्य बनाना । अच्छा संस्कार देना , अपने संस्कृति के मुल्यों तथा सिद्धांतों के अनुसार चलना , पालन करना तथा अपने संतान को भी उस पर चलने की प्रेरणा देना ।
राज्य के कर्मचारियों का धर्म है संविधान द्वारा निर्देशित कानून के अनुसार राज्य के नागरिकों को सुविधा उपलब्ध कराना तथा कर वसूलना जिसका उपयोग राज्य के विकाश में हो ।
न्यायपालिका का धर्म है बिना पक्षपात एवं भेद भाव के देश के संविधान के अनुसार नागरिकों को त्वरित न्याय देना ।
पत्रकारों का धर्म है समाज तथा देश के समाने केवल सत्य को प्रस्तुत करना बिना लाग लपेट के , देश के प्रशासकों का ध्यान देश तथा समाज तथा नागरिकों के समस्या के तरफ खिंचना ।
नाट्यकारों , हास्यकारो का धर्म है देश के जनता को स्वस्थ मनोरंजन उपल्ब्ध करना ।
संगीतज्ञ का धर्म है अपने कला से संगीत में रूचि रखने वाले के मन को शांति तथा सकुन उपल्ब्ध कराना ।
सांसदो एवं विधायकों का धर्म है नागरिकों के कल्याण के लिए निष्पक्ष कानून बनाना तथा जनता का निष्काम सेवा ।
व्यापारियों का धर्म है अपने ग्राहकों को उचित मुल्य पर बढ़िया सामान उपलब्ध कराना । ग्राहकों कि सेवा करना ।
किसान का धर्म है स्वास्थ्य अनुकूल अन्न का उत्पादन करना ।
पड़ोसी का धर्म है अपने पड़ोसियों से मित्रता , सद्भाव का एवं जरूरत पड़ने पर एक दुसरे कि सहायता सहयोग तथा सहानुभूति का फर्ज निभाना ।
सैनिकों धर्म है देश कि रक्षा करना । तथा पुलिस का धर्म है देश के अंदर कानुन के पालना को सुनिश्चित करना ।
डौक्टर तथा बैद्य का धर्म है रोगियों कि सेवा करना ।
तो सार यह की यह धारणा गलत है कि धर्म की रक्षा करना है । नहीं।
धर्म का ठीक ठीक पालन करने से , अपने संस्कृति के अनुसार जीवन जीने से धर्म जीव समाज परिवार देश की रक्षा करता है । हम धर्म कि रक्षा नहीं कर सकते ।
जो मनुष्य अपने धर्म का पालन नहीं करता है और जो अपने संस्कृति से भटक जाता है उसका समूल विनाश किसी न किसी माध्यम के द्वारा अपने आप एक दिन अवश्य हो जाता है ।
श्री राधे :- संजीव कुमार।
Radhe Radhe 🙏 very nice 👍
ReplyDelete