Posts

Showing posts from May, 2021

"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

Image
श्री महाराज जी - मीरा को जब उसके ससुराल में भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करने से रोका जाने लगा  , भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में  बाधा उत्पन्न किया जाने लगा उसके परिवारवालों के द्वारा , तरह तरह का कष्ट दिया जाता था उसे , भगवान श्री कृष्ण के विग्रह को फेंक दिया जाता था । तो मीरा दुखी होकर  तुलसीदास जी को  पत्र लिखी और उनसे पुछी कि ऐसे में मैं क्या करूं ? कभी कभी तो मेरी इच्छा होती है मैं सबको त्याग दूं सदा के लिए , इसमें कोई पाप तो नहीं ?  तो तुलसीदास जी ने मीरा के पत्र का ज़बाब दिया वो उनके विनय पत्रिका में हैं आप सब पढ़ लीजिएगा  । उन्होंने मीरा को लिखा कहा - "जाके प्रिय न राम बैदेही । तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि  परम  सनेही ।।1।। तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषण बंधु , भरत महतारी । बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज-बनित्नहिं,भए मुद-मंगलकारी।।2।। नाते नेह रामके मनियत सुह्र्द सुसेब्य जहां  लौं । अंजन कहा आंखि जेहि फूटै ,बहुतक कहौं कहाँ लौं ।।3। तुलसी सो सब भांति परम हित पूज्य प्रानते प्यारे । जासों होय सनेह राम –पद , एतो मतो     हमारॉ ।। भावार्थ ...

"भगवद् मार्ग के पथिक को अपने मान सम्मान में सुख और अपमान में दुख का अनुभव कभी नहीं करना चाहिए

Image
श्री कृपालु जी महाप्रभु :- "भगवद् मार्ग के पथिक को अपने मान सम्मान में हर्ष और अपमान में दु:ख का फिलिंग (अनुभव) कभी नहीं करना चाहिए हमें तो यह शौख होना चाहिए कि कोई मेरा अपमान करे और मैं जरा भी बिचलित न होऊ , उल्टे हंसता रहुं ,   हमें अच्छा बनने का प्रयत्न करना चाहिए ना कि अच्छा कहलवाने का । "  और गौरंग प्रभु ने भी कहा है कि :-  न धनं न जनं न सुन्दरीं कवितां वा जगदीश कामये।  मम जन्मनि जन्मनीश्वरे भवताद् भक्तिरहैतुकी त्वयि॥४॥ अनुवाद: हे सर्व समर्थ जगदीश ! मुझे धन एकत्र करने की कोई कामना नहीं है, और मान सम्मान की कोई कामना है और न मैं अनुयायियों, सुन्दर स्त्री अथवा प्रशंनीय काव्यों का इक्छुक हूँ । मेरी तो एकमात्र यही कामना है कि जन्म-जन्मान्तर मैं आपकी अहैतुकी भक्ति कर सकूँ ॥४॥ अयि नन्दतनुज किंकरं पतितं मां विषमे भवाम्बुधौ।  कृपया तव पादपंकज-स्थितधूलिसदृशं विचिन्तय॥५॥ अनुवाद: हे नन्दतनुज ! मैं आपका नित्य दास हूँ किन्तु किसी कारणवश मैं जन्म-मृत्यु रूपी इस सागर में गिर पड़ा हूँ । कृपया मुझे अपने चरणकमलों की धूलि बनाकर मुझे इस विषम मृत्युसागर से मुक्त करिये...

कलियुग केवल नाम आधारा ,सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा ।।

Image
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम केवलम् , कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा ।। नाम के अतिरिक्त क्ल्याण का और मार्ग नहीं। कलयुग में बहुत दोष है। दोष से युक्त है यह कलयुग! लेकिन दोषयुक्त होने पर भी इसमें एक सबसे बड़ा गुण है और यह गुण स्मस्त दोषों को ढके हुए हैं । यह एक गुण अन्य दोषों पर भारी पड़ता है। कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा ।। यानि कलयुग में कोई साधक भगवान में ध्यान स्थिर करके भगवन्नाम का सहारा लेता है , तो " गतिरन्यथा" - उसकी उत्तम गति एक मात्र भगवन्नाम लेने से हो जाती है । अन्यत्र कहीं जाने की भटकने की कोई आवश्यकता नहीं है । अन्य कोई उपाय करने की आवश्यकता नहीं हैं । इस कलियुग में जीव के उद्धार का सबसे सरल मार्ग है, माया से मुक्ति का यह सबसे बड़ी दवा है ।  गौरांग महाप्रभु ने कहा है कि -  संकिर्तन यज्ञे करे कृष्ण-आराधन । सेई तो सुमेधा  पाय कृष्णेर चरन ।।  सुमेधा माने बुद्धिमान , संकिर्तन यज्ञ माने - मन से भगवान के नाम का सेवन करना ,  संग करना अपने आपको अर्पित करना । तो यहां गौरांग महाप्रभु कहते हैं कि इस कलियुग में कोई जीव यदि भगवान का नाम...

तीन प्रकार की भगवत्कृपा होती है ।

Image
तीन प्रकार की भगवत्कृपा होती है । एक कृपा , एक विशेष कृपा , एक अद्भुत कृपा , ये तीन कृपाये होती हैं , भगवान् की । किसी का पुण्य थोड़ा है, उसके ऊपर एक कृपा हुई । किसी का पुण्य विशेष अधिक है, तो दो कृपा हो गई और किसी का बहुत पुण्य है, तो तीन कृपा होती हैं । ये तीनों दुर्लभ हैं । बहुत दुर्लभ , हज़ारो में एक ऐसा नहीं , लाखों में एक ऐसा नहीं, करोड़ो में एक ऐसा नहीं, अरबों में एक ऐसा नहीं अनंत में एक । ये ऐसी कृपा है। पहली कृपा :- मानवदेह प्राप्त होना । ये मानवदेह सब देहों में श्रेष्ठ है । देवताओं के देह से भी श्रेष्ठ है । दूसरी कृपा :- महापुरुष का मिलना ये विशेष कृपा । जिसको भगवत्प्राप्ति हो गई हो , जो भगवत्प्राप्ति का सही मार्ग जानता हो , हमको बता सके ऐसा वास्तविक महापुरुष अगर किसी को मिल गया तो ये नंबर दो की कृपा हुई । तीसरी कृपा :- तीसरी चीज़ जो सबसे इम्पोर्टेन्ट है जिसको अद्भुत कृपा कहते है ,भूख कहते है , जिज्ञासा वो पाने की व्याकुलता । जो हमारे ऊपर नहीं हुई यह बहुत कम हुई । बार- बार सोचो, कितनी बड़ी भगवत्कृपा मेरे ऊपर है, अगर मृत्यु के एक सेकण्ड पहले भी आपको यह बोध हो गया कि मैं कितना स...

BGSM (ब्रजगोपिका सेवा मिशन ) द्वारा 2007 से बाल संस्कार शिविर का आयोजन।।

Image
राधेराधे  विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तमई स्वामी श्री कृपालु जी महाराज जी के विशिष्ट वरिष्ठ एवं प्रमुख प्रचारिका रासेस्वरी देवी जी द्वारा प्रतिस्थापित BGSM (ब्रजगोपिका सेवा मिशन ) द्वारा 2007 से बाल संस्कार शिविर का आयोजन किया जा रहा है । जिस में बच्चों के सर्वांगीण बहुआयामी उन्नति के लिए विभिन्न कार्यक्रम किये जाते रहे है । विद्वान और योग्य शिक्षकों द्वारा ट्रेनिंग दिया जाता है ।  बहुतों का प्रश्न ये है की ऐसा शिविर तो और भी संस्था आयोजन करते है लेकिन ऐसा क्या है जो इस शिविर को औरों से अलग करता है ? प्रत्येक पिता माता ये चाहते है कि हमारा संतान संस्कारवान बनें ।उसकी शिक्षा सबसे अच्छे school या college में हो ।सबसे qualified teacher मिले हमारे बच्चों को ।ये हर वो मातापिता चाहते है जो अपने बच्चों को समाज में प्रतिष्ठित और सम्मानित देखना चाहते है । और ये संस्था तो विश्व के पंचम मूल जगद्गुरु जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालुजी महाराज जी के आदर्श और दर्शन से प्रेरित है तो सोचिये यहां पर कि कितनी उच्च शिक्षा मिलती होगी आपके बच्चों को यहां ? बहुतों को ये भी भय रहता है कहीं ये हमारे ...

गुरू तत्त्व

Image
💐💐💐💐गुरू तत्त्व💐💐💐💐 अभी तक हमने जाना कि तीन तत्त्व हैं - वह,  मैं  और यह । अर्थात् ब्रह्म, जीव और माया । फिर यह चौथा गुरू तत्त्व कहांँ से आ गया ? वेद व्यास जी कहतें हैं -  'नास्ति तत्त्वं गूरो: परम् ।'  गुरू के आगे कोई तत्त्व ही नहीं है । परतत्त्व यानी अंतिम तत्त्व गुरूतत्त्व है । यह वेदव्यास भगवान के अवतार लिख रहें हैं । कौन उँगली उठावे ।  पर स्वाभाविक प्रश्न है - जब वेदों में, शास्त्रों में परतत्त्व श्रीकृष्ण को बताया गया है, तो गुरू कैसे परतत्त्व हो जाएगा । इसका उत्तर वेद देता है कि गुरू तत्त्व भगवान से बड़ा नहीं है । लेकिन है भी । मतलब ! मतलब यह कि हम अपने स्वार्थ की दृष्टि से गुरू तत्त्व को भगवान से बड़ा मानते हैं । वास्तव में हैं नहीं , किन्तु मानतें हैं । क्यों ? इसलिए  कि भगवान को जानना सबसे पहले जरूरी है । श्रीकृष्ण कौन हैं ? उनसे हमारा क्या संबंध है ? उनकी प्राप्ति क्यों की जाए ? उनकी प्राप्ति कैसे की जाए ? यह सब ज्ञान सबसे पहले आवश्यक है । यह ज्ञान वेदों से प्राप्त होगा । किसी भी ज्ञान की अंतिम आथोरिटी वेद है । हम वेद पढ़कर भगवान के बिषय ...

बड़े भाग्य मानुस तन पावा। सुर दुर्लभ सद् ग्रंथन गावा॥

Image
बड़े भाग्य मानुस तन पावा।  सुर दुर्लभ सद् ग्रंथन गावा॥ साधन धाम मोक्ष कर द्वारा।  पाई न जेहि परलोक संवारा॥ सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि-धुनि पछिताय।  कालहिं कर्महिं ईश्वरहिं मिथ्या दोष लगाय॥   जो न तरै भव सागर, नर समाज अस पाइ। सो कृत निंदक मंदमति, आत्माहन गति जाइ॥ (उत्तरकाण्ड दोहा ४४)तुलसीदास जी ।  बड़े सौभाग्य से जीवों को मनुष्य का शरीर मिलता है। यह शरीर पाना देवों के लिए भी दुर्लभ है। क्योंकि देवता भगवद्प्रेम की प्राप्ति , श्रीकृष्ण के प्रेम को प्राप्त करने के लिए कोई कर्म भी कर हीं नहीं सकता‌ , कारण कि देवता एक भोग योनि का शरीर है ,‌ आपलोग ही अनेकों पुण्य करके अनेक बार इंद्र वरूण कुबेर बने जैसे हरिश्चंद्र , राजा बलि आदि और फिर पुण्य सब समाप्त हो गया स्वर्ग के सुख को भोगने के बाद तो फिर से पृथ्वी पर पटक दिए गए कुत्ता बिल्ली गद्हा आदि के योनि में ।  देवताओं का शरीर सूक्ष्म शरीर है , और केवल मनुष्य के शरीर में हीं यह गुण है कि वो कर्म करके , भक्ति करके भगवद् प्राप्ति कर लें । ऐसे दुर्लभ शरीर को पाकर जो मनुष्य भक्ति नहीं करें , भगवद्प्राप्ति के ल...

राधा रानी की उपासना बड़ा आसान है , केवल मन से हमेशा उनको याद करिये |

Image
राधा रानी की उपासना बड़ा आसान है , केवल मन से हमेशा उनको याद करिये | हम शरीर नही आत्मा हैं और हम सभी आत्मा की शाश्वत मां राधा रानी हीं हैं |  ब्रह्मा , विष्णु , महेश , गणेश जी , हनुमान जी , मां जगदम्बा भी उन्ही को भजते हैं | क्योकि ये लोग ही भगवान श्री कृष्ण के डाईरेक्ट अंश हैं इसलिये ये भी भगवान ही कहलाते है | अब आप पुछियेगा की राम कृष्ण बहुत जगह शास्त्र में लिखा है कि पुजा करते हैं शंकर , या मां जगदम्बा आदि की तो इसलिय की वेद में ही लिखा है और यह भगवान श्री कृष्ण ने खुद कहा है कि अहं भक्त पराधिन: , इसका मतलब की हम अपने भक्तों के अधिन हैं , हम भक्त के बस में हैं हम अपने भक्तों को भजतें है और भक्त मुझे | भगवान ने देवी देवता तथा ग्रहो की पुजा बंद करा दि थी | देखिये गीता भागवत् कैसे उन्होने ईन्द्र की पुजा बंद करा दी , परन्तु पण्डितों ने लोगों को गुमराह कर अपने फायदे के लिये पुजा करवाते हैं जिसका कोइ फल नही हैं | तमाम ग्रह डरते हैं और भजते है एक मात्र राधाकृष्ण को| और जब वो देखेंगें की आप भी उनके इष्ट को भजते है तो खुश होंगें | आपका कुछ नही विगारेंगें | छोडिये करमकाण्ड - सत्यनारायन का...

ये स्वर्ग भी हमारे मृत्यु लोक की तरह है , कोई अन्तर नही है | वहाँ भी काम, क्रोध , लोभ , मोह, मद, मात्सर्य , ईर्ष्या , द्वेष सब बिमारियाँ स्वर्ग में भी हैं |

Image
ये स्वर्ग भी हमारे मृत्यु लोक की तरह है , कोई अन्तर नही है | वहाँ भी काम, क्रोध , लोभ , मोह, मद, मात्सर्य , ईर्ष्या , द्वेष सब बिमारियाँ स्वर्ग में भी हैं | परीक्ष्य लोकान् कर्मचितान् ब्राह्मणो निर्वेदमायान्नास्त्यकृत: कृतेन | तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् || ( मुण्डकोपनिषद् १-२-१२ ) इस मंत्र का अभिप्राय यह है कि बड़े - बड़े योगियों ने , तपस्वियों ने , अनेक प्रकार के साधन किये किन्तु थक गये | न तो माया निवृत्ति हुई और न आनन्द प्राप्ति हुई | कोई लक्ष्य हल नहीं हुआ | स्वर्ग तक गये | स्वर्ग के सुखों को देखा , भोगा और वैराग्य हो गया | ये स्वर्ग भी हमारे मृत्यु लोक की तरह है , कोई अन्तर नही है | वहाँ भी काम, क्रोध , लोभ , मोह, मद, मात्सर्य , ईर्ष्या , द्वेष सब बीमारियाँ स्वर्ग में भी हैं | और वह भी कुछ दिन के लिय मिलता है | तब उन लोगों ने निश्चय किया कि उस ब्रह्म को जानने के लिये , भगवान को पाने के लिये और कोई साधन काम नहीं देगा | केवल एक साधन है | क्या ? श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की शरण में जाना होगा | श्रोत्रिय , ब्रह्मनिष्ठ , दो शब्द हैं | श...

प्रारब्ध क्या होता है?

Image
प्रारब्ध क्या होता है? भगवान् हमारे अनंत पुण्य व अनंत पापों में से थोडा-थोडा लेकर हमारे किसी एक जन्म का प्रारब्ध तैयार करते हैं और मानव जीवन के रूप में हमें एक अवसर देते हैं ताकि हम अपने आनंद प्राप्ति के परम चरम लक्ष्य को पा लें। प्रारब्ध सबको भोगना पड़ता है। भगवद् प्राप्ति के बाद भगवान उस जीव के तमाम पिछले जन्मों के एवं उस जन्म के भी समस्त पाप तो भस्म कर ही देते हैं, लेकिन वे उसके उस जीवन के शेष बचे हुए प्रारब्ध में कोई छेड़छाड़ नहीं करते। इसका अभिप्राय यह है कि भगवान् को पा चुके मुक्त आत्मा संतों/भक्तों को भी अपना उस जन्म का पूरा प्रारब्ध भोगना ही पड़ता है। उसमें इतना अंतर अवश्य आ जाता है कि अब वह नित्य आनंद में लीन रहने से किसी सुख-दुःख की फ़ीलिंग नहीं करता। लेकिन फिर भी एक्टिंग में उसे सब भोगना पड़ता है। किसी के प्रारब्ध को मिटाना भगवान् के कानून में नहीं है। वे लोग बहुत भोले हैं, जो यह समझते हैं कि अमुक देवी जी, अमुक बाबा जी अपनी कृपा से मेरे कष्ट को दूर कर देंगे। या मुझे धन, वैभव, पुत्र आदि दे देंगे। जो प्रारब्ध में लिखा होगा, वह नित्य भगवान् को गालियाँ देने से भी अवश्य मिलेगा। जो प्रा...

गोपी गीत भावार्थ सहित ।

Image
गोपी गीत भावार्थ सहित कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्ष: स्थले कौस्तुभं। नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणु: करे कंकणं॥ भावार्थ:- हे श्रीकृष्ण! आपके मस्तक पर कस्तूरी तिलक सुशोभित है। आपके वक्ष पर देदीप्यमान कौस्तुभ मणि विराजित है, आपने नाक में सुंदर मोती पहना हुआ है, आपके हाथ में बांसुरी है और कलाई में आपने कंगन धारण किया हुआ है। सर्वांगे हरि चन्दनं सुललितं कंठे च मुक्तावली। गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपाल चूडामणि:॥ भावार्थ:- हे हरि! आपकी सम्पूर्ण देह पर सुगन्धित चंदन लगा हुआ है और सुंदर कंठ मुक्ताहार से विभूषित है, आप सेवारत गोपियों के मुक्ति प्रदाता हैं, हे गोपाल! आप सर्व सौंदर्य पूर्ण हैं, आपकी जय हो। जयति तेऽधिकं जन्मना ब्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि। दयित दृश्यतां दिक्षु तावका स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते॥ (१) भावार्थ:- हे प्रियतम प्यारे! तुम्हारे जन्म के कारण वैकुण्ठ आदि लोको से भी अधिक ब्रज की महिमा बढ गयी है, तभी तो सौन्दर्य और माधुर्य की देवी लक्ष्मी जी स्वर्ग छोड़कर यहाँ की सेवा के लिये नित्य निरन्तर यहाँ निवास करने लगी हैं। हे प्रियतम! देखो तुम्हारी गोपीयाँ जिन्होने तुम्हारे चर...