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Showing posts from March, 2021

प्रेम ही ईश्वर है.

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*~*~*~*प्रेम ही ईश्वर है*~*~*~* समग्र विश्व के सभी धर्मों का एक ही लक्ष्य है - आनंद प्राप्ति | इस ' आनंद' को प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है - भगवान को जानना | और भगवान को जानने का, उनको प्राप्त करने का भी मात्र एक ही मार्ग है - प्रेम | इस स्वल्प जीवन काल में सारे शास्त्र और वेदों का ज्ञान प्राप्त करना असंभव है | अत: हमारे लिए श्री महाराज जी इन सब शास्त्र-वेदों का सार प्रस्तुत करते हुए इस श्लोक को उव्द्धत करते हैं- आलोड्य सर्वशास्त्राणि विचार्य च पुन: पुन: | इदमेकं सुनिष्पन्नं ध्येयो नारायणो हरि: || वे कहते हैं - ' मैने वेद, कुरान, इंजील सब पढ़ लिया , सबको स्वीकार कर लिया | मंदीर को भी अपना लिया , मस्ज़िद को भी और गिरिजाघर को भी अपना लिया, क्योंकि मैने खुदा से मोहब्बत कर ली |' श्री महाराज जी का कहना है कि आप सभी धर्म ग्रंथों को पढ़कर देख लें , सब एक ही निष्कर्ष पर पहुँचते हैं - " भगवान से प्रेम करो |" ईश्वर से प्रेम करना ही उपासना है | जहाँ भगवान से एकत्व हो जाए , वही उपासना है | उसके लिए कोई नियम नही है , किसी भी भाव से हो जाए | इसे समझाने के लिए श्री महाराज...

श्रीकृष्ण के 64 गुण

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श्री महाराज द्वारा :- श्रीकृष्ण के 64 गुण :- अब मैं रसिक शिरोमणी नायक श्रीकृष्ण के विशिष्ट गुणों का वर्णन करता हूँ। ध्यान दो, श्री कृष्ण में 64 गुण रहते हैं। यथा:- ' अथ नेता सुरभ्यांग:सर्वसल्लक्षणान्वित: रुचिरस्तेजसा युक्तो वलीयान् वयसान्वित:' 'नारीगणमनोहारी सर्वाराध्य: समृद्धिमान् वरीयानीश्वरश्चेति गुणास्तस्यानुकीर्तित: ' (भ. र. सि.) अर्थात् सुन्दर अंग वाले, श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त, मनोहर, तेजस्वी, बलवान्, सदा युवावस्था वाले से, स्त्रियों के मन को हरने वाले, सब से पूज्य, ऐश्वर्य-युक्त, श्रेष्ठ, समर्थ, आदि पचास गुणों वाले श्रीकृष्ण हैं। उपरोक्त पचास गुण श्रीकृष्ण के अतिरिक्त योगीश्वरों में भी होते हैं। अब हम पाँच गुण ऐसे बताते हैं, जो कि श्रीकृष्ण के अतिरिक्त ब्रह्माण्ड-नायक शंकर आदि में भी होते हैं। यथा :- ' सदास्वरुपसंप्राप्त: सर्वज्ञों नित्यनूतन: सच्चिदानन्दसान्द्रांग: सर्वसिद्धिनिषेवित:' अर्थात् सदा अपने ही स्वरुप में स्थिर रहने वाले, सबकुछ जानने वाले, नित्य ही नवीन रुप वाले, सच्चिदानन्दमय दिव्य देह वाले, समस्त सिद्धियों से उपास्य। अब पाँच गुण ऐसे बता रहे ह...

रूपध्यान बिधि - श्री कृपालु महाप्रभु जु ।

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श्री महाराज जी द्वारा बतलाया गया रूपध्यान - जैसा मैं बता रहा हूं । रूपध्यान बनाइए । अपने आपको गोलोक ले चलिए ।जहां आप लोग बैठे हैं यह मृत्यु लोक हैं ।इसके ऊपर सात लोक हैं और इसके नीचे सात लोक हैं ।  यह भू-लोक है । इसके ऊपर भू, भूव: मह: जन: तप; सत्य, ब्रह्म लोक है और नीचे तल ,अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, आदि सात लोक हैं।  इन चौदह लोकों का ये माया का ब्रह्मांड है ।यहां माया का आधिपत्य है ।इस ब्रह्मांड में तीन प्रकार के जीव रहते हैं -कुछ सात्त्विक प्रधान, कुछ राजस प्रधान, कुछ तामस प्रधान । सात्विक प्रधान जीवो को देवता कहते हैं । राजस प्रधान जीव इस मृत्युलोक के हैं , तामस प्रधान जीव राक्षस होते हैं।  वैसे हमारे मृत्यु लोक में भी इन तीनों प्रकृतियों के मनुष्य हैं । कुछ मनुष्य सात्विक हैं , कुछ राजस हैं , कुछ तामस है , और यह भी ध्यान रखिएगा कि जो सात्विक है । मनुष्य हो अथवा देवता हो उनमें भी तामस राजस रहता है । किंतु वो कम मात्रा में रहता है । इसलिए हम उसको सात्विक कह देते हैं । इसी प्रकार जो राजस हैं उनमें भी सात्विक और तामस रहता है , किंतु कम मात्रा में रहता है, इस...

हमारा देश भारतवर्ष , भगवान का अवतार , संतों का प्यारा भूभाग भारत

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हमारा देश भारतवर्ष , भगवान का अवतार , संतों का प्यारा भूभाग भारत :- आईये सुनते है , महाराज जी ने क्या कहा जब उनसे एक विदेशी ने  पुछा की भगवान के ज्यादातर अवतार भारत में ही क्यूँ होते हैं ? ( कामना और उपासना भाग एक ) महराज जी की वाणी :- "भारतवर्ष का तो ये सौभाग्य है कि यहाँ सन्तों की भरमार रही है | जितने वर्षों का इतिहास आप लोग जानतें हैं उतनें ही वर्षों में देख लीजिये कितने अवतार , कितने सन्त , हमारे देश में हुए | एक विदेशी ने हमसे कहा कि साहब ये क्या बात है कि गॉड आप ही के यहाँ अवतार लेता है ? हम लोगों के यहाँ क्यों नहीं अवतार लेता ? ये सौभाग्य इण्डिया को हीं क्यों प्राप्त है? हमने उनको बड़े मज़ाक में उत्तर दिया | हमने कहा चूँकि ये दुर्भाग्य भी इण्डिया को प्राप्त है कि बड़े - बड़े राक्षस भी यहीं हुए | तो कोई भी चीज़ किसी कारण से होती है | अरे उत्तर तो हमको कुछ और देना चाहिए था | लेकिन हमने जानबूझ कर कुछ ऐसा उत्तर दिया | उत्तर तो यह है कि भई भगवान् तो वहीं अवतार लेगें जहाँ उनके जन होगें , उनके सन्त होंगें , उनकी इच्छा होगी कि वो अवतार लें | वहीं तो वे अवतार लेंगे | मेन कारण तो सन्...

संसारिक सुख और दु:ख का कारण ।

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**** संसारिक सुख और दु:ख**** सुख और दु:ख दोनों क्रियामाण कर्म के कारण भी होते हैं और प्रारब्ध से भी | जैसे एक को बीमारी हुई प्रारब्धबस और दुसरे को बीमारी हुई बदहजमी से | यह जानने के लिए कि बीमारी प्रारब्धजन्य है या क्रियामाण क्रमानुसार , हमें यह देखना है कि बीमारी दवा से ठीक होती है या नहीं | यदि क्रियामान कर्म के कारण बीमारी होगी , तो दवा से ठीक हो जाएगी | जबकि प्रारब्धजन्य बीमारी एक निश्चित अवधि तक ही झेलनी पड़ेगी | दवा का कोई असर नहीं होगा |  " आज जो हम लोग बदल बदल कर कपड़े इस्तेमाल करतें हैं , बदल बदल कर खाना खाते हैं | ठाठ-बाठ ऐश्वर्य से रहतें हैं ये पिछले जन्मों में दान किया रहा होगा , उसका फल देते हैं भगवान् | और जो इतनी गरीबी में पल रहैं हैं , जिसकी माँ ने कूड़े में फेंक दिया था उसको | और बाद में बिचारा पेट भरने के लिए गुण्डा बना , सैंकड़ो मडर किए , चोरी किए | इतना सारा किसके लिए हुआ ? पेट के लिए | भगवान् ने एक ऐसी चीज बना दी है , सबके लिए , कुत्ता , बिल्ली , गधा-पेट | लेकिन साथ में बुद्धि भी दी है कि बेटा संसार के अनुसार चलो | कपड़ा पहनो खाना भी खाओ लेकिन लिमिट के अनुसार ...