प्रभु श्रीराम का आदर- सत्कार कर शबरी हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी |

महाराज जी के श्री मुख से शबरी प्रसंग :-
प्रभु श्रीराम का आदर- सत्कार कर शबरी हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी |
अपने प्रभु को देखा - उसका प्रेम अत्यन्त बढ़ गया | वह कहने लगी |
अधम ते अधम अधम अति नारी |
तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी ||
तब श्रीराम जी बोले - हे भामिनि ! मैं तो केवल भक्ति का सम्बन्ध मानता हूँ | जाति , पाँति , कुल , धर्म , बड़ाई , धन-बल , कुटुम्ब , गुण एवं चतुराई - इन सबके होने पर भी भक्ति रहित मनुष्य जलहीन बादल सा लगता हैं | उन्होने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश किया | कहा- मेरी भक्ति नौ प्रकार की है -
नवधा भक्ति कहहुँ तोहि पाहीं |
सावधान सुनु धरु मन माहीं ||
प्रथम भक्ति संतन कर संगा |
दूसरि रति मम कथा प्रसंगा ||
गुरुपदपंकज सेवा तीसरि भक्ति अमान |
चौथि भक्ति मम गुन गन करइ कपट तजि ज्ञान ||
मंत्र जाप मम द्दढ़ विश्वासा |
पंचम भजन सो वेद प्रकासा ||
छठ दम सील विरति कहु करमा |
निरत निरन्तर सज्जन धरमा ||
सातवँ सम मोहि मय जग देखा |
मोते संत अधिक कर लेखा ||
आठवँ जथा लाभ संतोषा |
सपनेहुँ नही देखहिं परदोषा ||
नवम सरल सब सन छल हीना |
मम भरोष हिय हरषन दीना ||
नव महँ एकहुँ जिन्ह के होई |
नारी पुरुष सचराचर कोई ||
(राम शबरी से )
अर्थात:-
(१) संतो की संगति अर्थात सत्संग
(२) श्री राम कथा में प्रेम
(३) गुरुजनों की सेवा
(४) निष्कपट भाव से हरिगुणगान
(५) पूर्ण विश्वास से श्रीराम नाम जप
(६) इन्द्रियदमन तथा कर्मों से वैराग्य
(७) सबको श्रीराममय जानना
(८) यथा लाभ में संतुष्टि तथा
(९) छल-रहित सरल स्वभाव से ह्रदय में प्रभु का विश्वास |
इनमें से किसी एक प्रकार की भक्ति वाला मुझे प्रिय होता है , फिर तुझमें तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है | अतएव जो गति योगियों को भी दुर्लभ है , वह आज तेरे लिये सुलभ हो गयी है |
उसी के फलस्वरुप तुम्हें मेरे दर्शन हुए , जिससे तुम सहज स्वरुप को प्राप्त करोगी | ( महाराज जी के प्रवचन का अंस , शबरी प्रसंग पर )
नीचे शबरी के उस स्थान का वास्तविक तसवीर हैं जहां शवरी ने भगवान को जुठे बेड़ खिलाय और भगवान ने शबरी माता को दर्शन देकर कृत-कृत कर दिए , स्थान नासीक के पास है |

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