प्रश्न -भगवद् प्राप्ति क्या है ?

प्रश्न -भगवद् प्राप्ति क्या है ? 
उत्तर :- जीवात्मा का माया से निवृत्ति तथा भगवान में प्रवृत्ति ही भगवद् प्राप्ति का मूल आधार है , दुसरे शब्दों में संसार से मोह ( attachment ) समाप्त हो जाना , यानि संसार से पूर्ण वैराग्य और भगवान में सेंट पर्सेंट मन का अटैचमेंट हो जाना भगवद् प्राप्ति है । 
जीवात्मा जब माया से मुक्त हो जाता है तो उसको मायिक गुणों तथा स्वरूप से मुक्ति मिल जाती है , स्वरूपावरी का माया तथा गुणावरी का माया दोनों से मुक्ति होते ही मायिक दुर्गुणें चली जाती है और जीव को दैविक गुण , भगवदिय गुण यानि ईश्वरीय गुण , ईश्वरीय संपत्तियां , ईश्वरीय आनंद सदा को प्राप्त हो जाता है इसी को भगवद् प्राप्ति कहते हैं । 
स्वरूपावरी का माया मिटने पर जीव का देहाभिमान समाप्त हो जाता है , वो स्वयं को देह नहीं मानता , वो देहभाव से उपर उठ जाता है मानसिक स्तर पर तथा गुणावरी का माया समाप्त होते ही त्रिगुण ( सतोगुण , रजोगुण तथा तमोगुण ) से मुक्ति मिल जाती है , पंचकोष समाप्त हो जाते हैं , पंचकोष भस्म होते ही मायिक दुर्गुणें समाप्त हो जाती है । गुणावरी का माया मिटते ही संसार से वैराग्य तथा मायिक दुर्गुण जैसे राग-द्वेष काम, क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, मद् , मोह , लोभ, छल-कपट सब समाप्त हो जाते हैं । 
जिस मात्रा में जीव का संसार से वैराग्य होता है उसी मात्रा में जीव भगवान से अटैच होता है , भगवद् भक्ति कि ओर प्रवृत होता है । और जितनी मात्रा में जीव भगवान की ओर प्रवृत्त होता है उसे उतनी मात्रा की भगवद् प्राप्ति होती है । 
परंतु जब तक जीव पूर्ण रूप से संसार से डिटैच्ड और भगवान से अटैच्ड नहीं होता , उसके पतन की पुरी संभावना बनी रहती है । इसलिए कुसंग से बचना अत्यंत आवश्यक है । नहीं तो कमाया आठ आना और खर्चा रूपया होगा । 
:- पुज्यनियां रासेश्वरी देवी जी ।

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