उपवास का अर्थ

उपवास का अर्थ
सनातन धर्म का इन वेद-शास्त्रो से अनभिज्ञ मूर्ख पंडितो(अज्ञानी ब्राह्मणो) और तथाकथित ढोंगी बाबाओ/महात्माओ ने कितना बेड़ागर्क किया हैं उसकी एक झलक देखिये-

उप समीपे यो वास जीवात्मपरमात्मनोः ।
उपवासः स विज्ञेयः न तु कायस्य शोषणम् ।।
(2-39; वराहोपनिषत्)

वेद कह रहा हैं कि-
जीव के मन-बुद्धि का परमात्मा के निकट/समीप वास करना ना कि काया/शरीर का शोषण; यही वास्तविक अर्थ हैं उपवास का ।

और समाज में उपवास का अर्थ प्रचलित क्या हैं?
इस दिन ये मत खाओ ! उस दिन वो मत खाओ !
एकादशी के व्रत में ये खाओ, प्रदोष के व्रत में वो खाओ, जन्माष्टमी-रामनवमी-नवरात्रि आदि सभी पर्वो में हम बस व्रतो को खाने-पीने की वस्तुओ से ही जोड़कर देखते है !!!

अच्छा जी ! तो वेद की परिभाषानुसार आपका मन एकादशी या किसी भी अन्य पर्व या व्रत पर कितनी देर हरि-गुरु के पास रहा अर्थात् कितनी देर आपने भगवद्विषयक चिन्तन किया और मायिक विषयो से मन को दूर रखा??
अजी ! वो तो एक सेकण्ड के लिये भी नही हुआ बल्कि दिन में 20 बार हमने क्रोध किया सैकड़ो बार दूसरो के प्रति गलत चिन्तन किया !!

तो फिर आपने कोई व्रत नही किया यहाॅ तक कि रसनेन्द्रिय को भी उस दिन आपने कंट्रोल नही किया खूब राजसी आहार (तला-भुना पूड़ी-पकौड़ी-हलवा आदि) दिया । 
तो भगवान को तो खैर क्या बेवकूफ बनाओगे, लेकिन हाॅ स्वयम् को आप अच्छा धोखा दे रहे हैं कि हम धार्मिक हैं, भगवान के भक्त है वगैरह वगैरह.....

और इतना अज्ञानयुक्त होने पर भी स्वयम् को हम ज्ञानी समझे बैठे हैं इसी कारण कभी समझने का प्रयास तक नही किया हम लोगो ने ।
:- श्री महाराज जी

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