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Showing posts from March, 2016

हमारा देश भारतवर्ष , भगवान का अवतार , संतों का प्यारा भूभाग भारत

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हमारा देश भारतवर्ष , भगवान का अवतार , संतों का प्यारा भूभाग भारत :- आईये महाराज जी ने क्या कहा जब उनसे एक विदेशी ने पुछा की भगवान के ज्यादातर अवतार भारत में ही क्यूँ होते हैं ? ( कामना और उपासना भाग एक ) महराज जी की वाणी :- "भारतवर्ष का तो ये सौभाग्य है कि यहाँ सन्तों की भरमार रही है | जितने वर्षों का इतिहास आप लोग जानतें हैं उतनें ही वर्षों में देख लीजिये कितने अवतार , कितने सन्त , हमारे देश में हुए | एक विदेशी ने हमसे कहा कि साहब ये क्या बात है कि गॉड आप ही के यहाँ अवतार लेता है ? हम लोगों के यहाँ क्यों नहीं अवतार लेता ? ये सौभाग्य इण्डिया को हीं क्यों प्राप्त है? हमने उनको बड़े मज़ाक में उत्तर दिया | हमने कहा चूँकि ये दुर्भाग्य भी इण्डिया को प्राप्त है कि बड़े - बड़े राक्षस भी यहीं हुए | तो कोई भी चीज़ किसी कारण से होती है | अरे उत्तर तो हमको कुछ और देना चाहिए था | लेकिन हमने जानबूझ कर कुछ ऐसा उत्तर दिया | उत्तर तो यह है कि भई भगवान् तो वहीं अवतार लेगें जहाँ उनके जन होगें , उनके सन्त होंगें , उनकी इच्छा होगी कि वो अवतार लें | वहीं तो वे अवतार लेंगे | मेन कारण तो सन्त लोग है...

सुख और दु:ख

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**** संसारिक सुख और दु:ख**** आईये सुनते है महाराज जी ने क्या कहा :- सुख और दु:ख दोनों क्रियामाण कर्म के कारण भी होते हैं और प्रारब्ध से भी | जैसे एक को बीमारी हुई प्रारब्धबस और दुसरे को बीमारी हुई बदहजमी से | यह जानने के लिए कि बीमारी प्रारब्धजन्य है या क्रियामाण क्रमानुसार , हमें यह देखना है कि बीमारी दवा से ठीक होती है या नहीं | यदि क्रियामान कर्म के कारण बीमारी होगी , तो दवा से ठीक हो जाएगी | जबकि प्रारब्धजन्य बीमारी एक निश्चित अवधि तक ही झेलनी पड़ेगी | दवा का कोई असर नहीं होगा | " आज जो हम लोग बदल बदल कर कपड़े इस्तेमाल करतें हैं , बदल बदल कर खाना खाते हैं | ठाठ-बाठ ऐश्वर्य से रहतें हैं ये पिछले जन्मों में दान किया रहा होगा , उसका फल देते हैं भगवान् | और जो इतनी गरीबी में पल रहैं हैं , जिसकी माँ ने कूड़े में फेंक दिया था उसको | और बाद में बिचारा पेट भरने के लिए गुण्डा बना , सैंकड़ो मडर किए , चोरी किए | इतना सारा किसके लिए हुआ ? पेट के लिए | भगवान् ने एक ऐसी चीज बना दी है , सबके लिए , कुत्ता , बिल्ली , गधा-पेट | लेकिन साथ में बुद्धि भी दी है कि बेटा संसार के अनुसार चलो | कपड...

एक भगवान के ए सब नाम हैं |

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" हम न तो हिन्दु है , न तो मुस्लिम हैं , न इसाई हैं, न सिख्ख हैं, हम मनुष्य योनी में जनम लेने वाले सौभाग्यशाली जीव हैं और केवल इस मनुष्य योनी में भगवत्प्राप्ति की साधना संभव है" - युगल शरण जी ( कहो न क्या वात ह सेै ) जगदगुरु साधना शिविर.  " कोई भी मज़हब हो, कोई भी धर्म हो सबका धर्मी वस एक ही है, जिसे हिन्दु धर्म में 'ब्रह्य' परमात्मा ' भगवान आदि कहते हैं इस्लाम मे उसी को 'अल्लाह '  कहते हैं, फ़ारसी में खुदा कहते हैं ' 'लाओत्सी' धर्म वाले 'ताओ' कहते हैं,  बौद्ध लोग ' शुन्य' कहते हैं , जैन लोग 'निरंजन' कहते है , सिक्ख लोग ' सत श्री अकाल ' कहते हैं , और अंग्रेज लोग ' गौड' कहते हैं | उसी एक भगवान के ए सब नाम हैं | ये सब उसी एक के अपनी अपनी भाषाओं मे नाम हैं |  - जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ,

तेरा अहंकार है, जो मैनें नहीं दिया ।

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एक बार एक मेहमान किसी के घर गया। वह अंदर गया और मेहमान कक्ष मे बैठ गया। वह खाली हाथ आया था तो उसने सोचा कि कुछ उपहार देना अच्छा रहेगा। तो उसने वहा उसके घर में से टंगी एक पेन्टिंग उतारी और जब घर का मालिक आया, उसने पेन्टिंग देते हुए कहा, यह मै आपके लिए लाया हुँ। घर का मालिक, जिसे पता था कि यह मेरी चीज मुझे ही भेंट दे रहा है, सन्न रह गया !!!!! अब आप ही बताएं कि क्या वह भेंट पा कर, जो कि पहले से ही उसका है, उस आदमी को खुश होना चाहिए ?? मेरे ख्याल से नहीं.... लेकिन यही चीज हम भगवान के साथ भी करते है। हम उन्हे रूपया, पैसा चढाते है और हर चीज जो उनकी ही बनाई है, उन्हें भेंट करते हैं! लेकिन मन मे भाव रखते है कि ये चीज मै भगवान को दे रहा हूँ! और सोचते हैं कि ईश्वर खुश हो जाएगें। यह हमारी नादानी है ! हम यह नहीं समझते हैं कि उनको इन सब चीजो कि जरुरत नही। अगर हम सच मे उन्हे कुछ देना चाहते हैं तो हमें श्रद्धा के साथ, उन्हे अपने हर एक श्वास मे याद करना है , विश्वाश करना है हरि पर , गुरु पर , प्रभु जरुर खुश होगें !! किसी ने सच कहा है कि - अजब हैरान हूँ भगवन तुझे कैसे रिझाऊं मैं; कोई वस्तु नहीं ऐसी...

प्रभु श्रीराम का आदर- सत्कार कर शबरी हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी |

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महाराज जी के श्री मुख से शबरी प्रसंग :- प्रभु श्रीराम का आदर- सत्कार कर शबरी हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी | अपने प्रभु को देखा - उसका प्रेम अत्यन्त बढ़ गया | वह कहने लगी | अधम ते अधम अधम अति नारी | तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी || तब श्रीराम जी बोले - हे भामिनि ! मैं तो केवल भक्ति का सम्बन्ध मानता हूँ | जाति , पाँति , कुल , धर्म , बड़ाई , धन-बल , कुटुम्ब , गुण एवं चतुराई - इन सबके होने पर भी भक्ति रहित मनुष्य जलहीन बादल सा लगता हैं | उन्होने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश किया | कहा- मेरी भक्ति नौ प्रकार की है - नवधा भक्ति कहहुँ तोहि पाहीं | सावधान सुनु धरु मन माहीं || प्रथम भक्ति संतन कर संगा | दूसरि रति मम कथा प्रसंगा || गुरुपदपंकज सेवा तीसरि भक्ति अमान | चौथि भक्ति मम गुन गन करइ कपट तजि ज्ञान || मंत्र जाप मम द्दढ़ विश्वासा | पंचम भजन सो वेद प्रकासा || छठ दम सील विरति कहु करमा | निरत निरन्तर सज्जन धरमा || सातवँ सम मोहि मय जग देखा | मोते संत अधिक कर लेखा || आठवँ जथा लाभ संतोषा | सपनेहुँ नही देखहिं परदोषा || नवम सरल सब सन छल हीना | मम भरोष हिय हरषन दीना || नव महँ एकहुँ जिन्...

गुढ़ दिव्य विषय पर मां का दुर्लभ प्रवचन

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हम साधकों के लिए अति महत्वपूर्ण , गुढ़ दिव्य विषय पर मां का दुर्लभ प्रवचन , मां का स्वनुभव , उनकी ही जुवानी में -राधा रानी की उपासना का महत्व :- आप सब साधक राधारानी से बहुत प्यार किजिये , बहुत प्यार किजिए उनसे | उनको अपने ह्रदय में धारण किजिये , क्योंकि उनको ह्रदय में धारण करने पर ही भीतर में सद्गुण आऐगें | क्योंकि सदगुणों की खान राधारानी ही हैं | स्वयं पीछे रहना , दुसरों को आगे करना राधारानी का गुण है | स्वयं सदा कहते रहना की कृष्ण ने तो मुझ अकिंचन को युँ हि अपना लिया है | मै तो उनके लायक नही हूँ , कृष्ण जब राधा की प्रशंसा करते हैं तो राधा एकातं मे जाकर रोती हैं और रो रो कर कहती है ललिता , विशाखा आदि सखियों से की कृष्ण ऐसा जो कहते है ये उनकी महानता है जो वो मेरी प्रशंसा करते हैं , मै तो प्रशंसा के लायक नही हूँ ! क्या किया है मैने उनके लिए ? इतनी दीनता है राधारानी में , जो स्वयं तत्त्व हैं , स्वयं प्रेम हैं , स्वयं ह्रि लादिनी शक्ति हैं | लेकिन अपने आपको इतना संकुचित , इतना दीन हीन बनाकर रखती हैं | तो वो सप्त सिंधु 'राधा ' जिनमें ये सात गुण हैं , इन सातो गुणों की सिंधु...