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Showing posts from May, 2024

जब तुमको मैं मिल गया हूं और तुमने मुझे अपना मान लिया है तो फिर चिंता क्यों करती हो ।

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जब तुमको मैं मिल गया हूं और तुमने मुझे अपना मान लिया है तो फिर चिंता क्यों करती हो ।  मैं हूं न ! ये संसारिक सुख दुख तो प्रारब्धबस आता जाता रहता है , हमेशा नहीं रहता । प्रारब्ध है हस के भोगों और आगे बढ़ो , सब समय एक जैसा नहीं रहता , अप डाउन होता रहता है प्रारब्ध के कारण , चिंता मत करो । चिंता तो तभी होती है जब किसी जीव को अपने गुरू और ईष्ट पर भरोसा नहीं है । हरि गुरू किसी को दुख नहीं देते हैं ।अरे वो तो कृपालु है , हमेशा कृपा हीं करते हैं, अंदर ही अंदर संभालते रहते हैं , शरणागत का योग क्षेम वहन करने का जिम्मेदारी उनका है , तुम क्यों चिंता करते हो । भगवान और गुरू में मन लगाना तुम्हारा काम है वांकी सब हम पर छोड़ दो । :- श्री महराज जी , मनगढ़ धाम ।

गोलोक का वर्णन

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चलिए गोलोक‌ के बारे में जानते हैं आज ।। गोलोक का वर्णन विस्तृत रूप से :- ब्रह्मादि देवताओं द्वारा गोलोकधाम का दर्शन के साथ हम भी भाव‌ देह से वहां चलते हैं ।  भगवान विष्णु द्वारा बताये मार्ग का अनुसरण कर देवतागण ब्रह्माण्ड के ऊपरी भाग से करोड़ों योजन ऊपर गोलोकधाम में पहुंचे। गोलोक ब्रह्माण्ड से बाहर और तीनों लोकों से ऊपर है। उससे ऊपर दूसरा कोई लोक नहीं है। ऊपर सब कुछ शून्य ही है। वहीं तक सृष्टि की अंतिम सीमा है। गोलोकधाम परमात्मा श्रीकृष्ण के समान ही नित्य है। यह भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा से निर्मित है। उसका कोई बाह्य आधार नहीं है। अप्राकृत आकाश में स्थित इस श्रेष्ठ धाम को परमात्मा श्रीकृष्ण अपनी योगमायाशक्ति से (बिना आधार के) वायु रूप से धारण करते हैं। उसकी लम्बाई-चौड़ाई तीन करोड़ योजन है। वह सब ओर मण्डलाकार फैला हुआ है। परम महान तेज ही उसका स्वरूप है। प्रलयकाल में भी वहां श्रीकृष्ण अपने जनों के साथ परिकरों के साथ रहते हैं । वो गोलोक गोप-गोपियों से भरा रहता है। गोलोक लोक से सटा साकेतपुरी है , उसके नीचे पचास करोड़ योजन दूर दक्षिण में वैकुण्ठ और वामभाग में शिवलोक है। वैकुण्ठ व शिवलो...

प्रश्न -भगवद् प्राप्ति क्या है ?

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प्रश्न -भगवद् प्राप्ति क्या है ?  उत्तर :- जीवात्मा का माया से निवृत्ति तथा भगवान में प्रवृत्ति ही भगवद् प्राप्ति का मूल आधार है , दुसरे शब्दों में संसार से मोह ( attachment ) समाप्त हो जाना , यानि संसार से पूर्ण वैराग्य और भगवान में सेंट पर्सेंट मन का अटैचमेंट हो जाना भगवद् प्राप्ति है ।  जीवात्मा जब माया से मुक्त हो जाता है तो उसको मायिक गुणों तथा स्वरूप से मुक्ति मिल जाती है , स्वरूपावरी का माया तथा गुणावरी का माया दोनों से मुक्ति होते ही मायिक दुर्गुणें चली जाती है और जीव को दैविक गुण , भगवदिय गुण यानि ईश्वरीय गुण , ईश्वरीय संपत्तियां , ईश्वरीय आनंद सदा को प्राप्त हो जाता है इसी को भगवद् प्राप्ति कहते हैं ।  स्वरूपावरी का माया मिटने पर जीव का देहाभिमान समाप्त हो जाता है , वो स्वयं को देह नहीं मानता , वो देहभाव से उपर उठ जाता है मानसिक स्तर पर तथा गुणावरी का माया समाप्त होते ही त्रिगुण ( सतोगुण , रजोगुण तथा तमोगुण ) से मुक्ति मिल जाती है , पंचकोष समाप्त हो जाते हैं , पंचकोष भस्म होते ही मायिक दुर्गुणें समाप्त हो जाती है । गुणावरी का माया मिटते ही संसार से वैराग्य तथा म...