यह धराधाम कभी इश्वर से खाली नही रहा है। कभी पूर्णावतार , कभी अंशावतार , कभी विलाशावतार , कभी युगावतार, कभी संत और महापुरुषावतार तो कभी दासावतार आदि के रुप में हमेशा भगवान सगुन साकार रुप में इस धराधाम पर निवास हमेशा किये थे , करते है , और करते रहेगें ।

यह धराधाम कभी इश्वर से खाली नही रहा है। कभी पूर्णावतार , कभी अंशावतार , कभी विलाशावतार , कभी युगावतार, कभी संत और महापुरुषावतार तो कभी दासावतार आदि के रुप में हमेशा भगवान सगुन साकार रुप में इस धराधाम पर निवास हमेशा किये थे , करते है , और करते रहेगें । जब भगवान, संत , महापुरुष , सारे एक हीं है , अपने लीला का संवरण करते हैं तो अपने पीछे अपने परम नीधी स्वरुप अंशो को छोड़ जाते हैं हमारे कल्याण के लिये , हमारी रक्षा के लिये । हमारे मार्ग दर्शन के लिये । ये वे दया वश , करुणा वश , कृपा वश करते है , हम पतित जीवो के उद्धार के लिये। अब हमारे प्राण वल्लभ श्री 'कृपालु जी महाराज जी ' ने भी ऐसा ही किये हैं । अपनी अंशो को , तीनो दीदीयों को और पुत्रों को हमारे कल्याण के लिये एक वरदान स्वरुप हमे देकर खुद निराकार स्वरुप हो कर इस चराचर में व्याप्त हो गये हैं । यह अनुभव प्रमाण और शास्त्र प्रमाण है ऐसा हर युग में हुआ हैं। जिन लोगों ने भाव चक्छु , प्रेम पुर्ण नेत्रों से दीदीयों को देखा है , उनके चरण कमल पर अपना मस्तक रखा है , उनको जरुर ऐ एहसास हुआ होगा या हुआ है कि तीनो दीदीयां और भईया क...