"भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं ।माने दैन्यभयम्, बले रिपुभयम्, रूपे जराया भयम् ।शास्त्रे वादिभयम्, गुणे कलभयम्, काये कृतान्ताद्भयंसर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैराग्यमेवाभयम् ॥ संसार में समस्संत दुखों तथा भय का एक मात्र कारण जीवों का संसार से मोह , अटैचमेंट है । "(Bhartrihari from the Vairagya shatakam)
संसार में समस्संत दुखों तथा भय का एक मात्र कारण जीवों का संसार से मोह , अटैचमेंट है । सार में भगवद् प्राप्त संत को छोड़ कर एक भी जीव इस पृथ्वी पर नहीं हुआ या है जो किसी न किसी रूप में भय का शिकार न हो । और भय से मुक्ति तबतक नहीं हो सकती जबतक जीव भगवद् प्राप्ति न कर लेगा । दुनिया का प्रत्येक जीव चाहे वो संसार का कितना भी महान या प्रतापी बलिष्ठ राजा हीं क्यों न हुआ हो या आज पी एम , राष्ट्रपति , सी एम् या डी एम, उद्योगपति मंत्री , संतरी आदि है, कितना पावरफुल मनुष्य क्यों न है, वो भयभीत हैं अंदर से और रहेगा हमेशा तबतक जबतक वो भगवान को प्राप्त न कर ले । अरे मनुष्य को तो छोड़िए इंद्र वरूण कुबेर देवता आदि से लेकर रावण , कंस आदि महाबलशाली राक्षस भी भय से ग्रस्त था और उसी भय के कारण विनाश को प्राप्त किया । यह भय ही समस्त दुखों का कारण है । अब सवाल उठता है कि भय का असली कारण क्या है ? तो श्री कृपालुजी महाराज जी ने भर्तृहरि रचित वैराग्य सतकम से निम्नलिखित श्लोक के माध्यम से बड़े अच्छे से हमें समझाए है । जो निम्नलिखित हैं - "भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वि...