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Showing posts from October, 2023

"भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं ।माने दैन्यभयम्, बले रिपुभयम्, रूपे जराया भयम् ।शास्त्रे वादिभयम्, गुणे कलभयम्, काये कृतान्ताद्भयंसर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैराग्यमेवाभयम् ॥ संसार में समस्संत दुखों तथा भय का एक मात्र कारण जीवों का संसार से मोह , अटैचमेंट है । "(Bhartrihari from the Vairagya shatakam)

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संसार में समस्संत दुखों तथा भय का एक मात्र कारण जीवों का संसार से मोह , अटैचमेंट है ।  सार में भगवद् प्राप्त संत को छोड़ कर एक भी जीव इस पृथ्वी पर नहीं हुआ या है जो किसी न किसी रूप में भय का शिकार न हो । और भय से मुक्ति तबतक नहीं हो सकती जबतक जीव भगवद् प्राप्ति न कर लेगा ।  दुनिया का प्रत्येक जीव चाहे वो संसार का कितना भी महान या प्रतापी बलिष्ठ राजा हीं क्यों न हुआ हो या आज पी एम , राष्ट्रपति , सी एम् या डी एम, उद्योगपति मंत्री , संतरी आदि है, कितना पावरफुल मनुष्य क्यों न है, वो भयभीत हैं अंदर से और रहेगा हमेशा तबतक जबतक वो भगवान को प्राप्त न कर ले । अरे मनुष्य को तो छोड़िए इंद्र वरूण कुबेर देवता आदि से लेकर रावण , कंस आदि महाबलशाली राक्षस भी भय से ग्रस्त था और उसी भय के कारण विनाश को प्राप्त किया ।  यह भय ही समस्त दुखों का कारण है ।   अब सवाल उठता है कि भय का असली कारण क्या है ?  तो श्री कृपालुजी महाराज जी ने भर्तृहरि रचित वैराग्य सतकम से निम्नलिखित श्लोक के माध्यम से बड़े अच्छे से हमें समझाए है । जो निम्नलिखित हैं -  "भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वि...

दुर्गा कौन हैं ?

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दुर्गा कौन हैं ? जो कुछ शंकर करते हैं और जो कुछ शंकर हैं, वही दुर्गा हैं, सीधी-सीधी बात। अब उनके... जैसे भगवान के अनन्त रूप हैं, अनन्त अवतार हैं, ऐसे भगवती के भी अनन्त अवतार हैं, उन्हीं अनन्त अवतारों में एक अवतार,  जिसको भगवान नहीं मार सके— मधु कैटभ, शुम्भ-निशुम्भ, रक्तबीज, इन राक्षसों को भगवान नहीं मार सके।  दशवर्ष सहस्राणि बाहुप्रहरणो विभुः। भगवान...दस हज़ार वर्ष तक युद्ध किया है भगवान ने, मधु कैटभ से  और नहीं जीत सके। तो मधु कैटभ ने कहा वर माँगो, सबको वर देते हो, हम तुमको वर देते हैं।  तो... तो उनको फिर ये देवी जी का रूप धारण करके, भगवान ही तो देवी जी बने थे। उन्हीं का तो सब स्वांश हैं। वो स्वयं देवी बन गये  और पचास भुजा और पचास सिर बना-बनुकर के अपना और उसको मार-मूरके खतम किया।  तो, लौकिक दृष्टि से तो भगवान जिसको मार नहीं सके, उसको मारा है दुर्गा ने। काली ने। जिसके उपासक रामकृष्ण परमहंस हैं। इसलिये मार्कण्डेय पुराण में कहा है— यस्या स्वभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्माहरश्च नहि वक्तुं अलं बलं च।  जिन महाकाली की महिमा को भगवान विष्णु नहीं जान सकते, इतनी बड़ी...