धर्म का स्वरूप क्या है? धर्म है क्या?

युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से शर-शैया पर प्रश्न किया महाराज! तमाम शास्त्र-वेद से तो हम थक गये, संक्षेप में ऐसी कोई चीज बताइये कि धर्म का स्वरूप क्या है? धर्म है क्या? तो भीष्म पितामह ने उत्तर दिया_ एष मे सर्वधर्माणां धर्मोऽधिकतमो मतः। यद्भक्त्या पुण्डरीकाक्षं स्तवैरर्चेन्नरः सदा॥ (महाभारत) तमाम धर्म भ्रम में डालने वाले हैं और तुमको तो भ्रम मिटाना है? भ्रम माने माया, जिसके कारण आनन्द प्राप्ति से वंचित हो। तो केवल पुण्डरीकाक्ष श्रीकृष्ण में मन का लगाव कर दो, सरेन्डर कर दो, शरणागत कर दो, उनकी भक्ति करो, बस। इसके अतिरिक्त कोई धर्म ही नहीं होता। धर्म माने, आप जानते हैं? धर्म माने होता है धारण करने योग्य। धारण करने योग्य, जैसे आप लोग शरीर के लिये धारण करने योग्य आटा, दाल, चावल सब रखते हैं, बनाते हैं, खाते हैं क्यों? वह शरीर चलाने के लिये, शरीर को धारण करने के लिये योग्य है, वह सब सामान। ऐसे ही इस आत्मा का जो स्वरूप है असली, उसके धारण करने का सामान क्या है? स्प्रिचुअल खाना क्या है? कुछ नहीं है और कही...